गैर-मुसलमानों के साथ संबंधों के लिए इस्लाम के अनुसार दिशानिर्देश

गैर-मुसलमानों के साथ संबंधों के लिए इस्लाम के अनुसार दिशानिर्देश

हमें विस्तार से पता होना चाहिए कि इस्लाम के अनुसार मुसलमानों को गैर-मुसलमानों के साथ कैसे संबंध रखने चाहिए...

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क्या कुरआन के अनुसार पृथ्वी गोल नहीं समतल है?

क्या कुरआन के अनुसार पृथ्वी गोल नहीं समतल है?

कुछ लोगो को लगता है कि कुरआन के अनुसार पृथ्वी समतल है जबकि कुरआन की एक भी आयत यह नहीं कहती है कि पृथ्वी समतल (फ्लैट) है. कुरआन केवल एक कालीन के साथ पृथ्वी की पपड़ी की तुलना

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जीवन का उद्देश्य

जीवन का उद्देश्य

एक ज्ञान वह है जो मनुष्य की आवश्यकताओं से सम्बंधित होता है, जिसे दुनिया का ज्ञान कहते हैं. इसके लिए ईश्वर ने कोई संदेशवाहक नहीं भेजा, बल्कि वह ज्ञान ईश्वर ने मस्तिष्क में पहले से सुरक्षित कर दिया है.

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अच्छे कार्यो का स्वर्ग में क्या बदला मिलेगा?

अच्छे कार्यो का स्वर्ग में क्या बदला मिलेगा?

अच्छे कार्यों के बदले में स्वर्ग की इच्छा की जगह ईश्वर को पाना ही मकसद होना चाहिए. जिसने स्वयं ईश्वर को पा लिया उसने सब कुछ पा लिया.

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शोभायमान आँखों वाली हूर!

शोभायमान आँखों वाली हूर!

शब्द हूर, अहवार (एक आदमी के लिए) और हौरा (एक औरत के लिए) का बहुवचन है. इसका मतलब ऐसे इंसान से हैं जिसकी आँखों को "हवार" शब्द से संज्ञा दी गयी है....

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दया और न्याय का स्थान

  • Friday, August 2, 2013
  • by
  • Shah Nawaz
  • मुसलमानों के लिए यह ज़रूरी है कि वह जान और मान लें कि इस्लाम दया और न्याय का धर्म है. इस्लाम के लिए इस्लाम के अलावा अगर कोई और शब्द इसकी पूरी व्याख्या कर सकता है तो वह "न्याय" है.

    किसी पर झूठा इलज़ाम लगाना या झूठा इलज़ाम लगाने वालों का साथ देना, जब तक किसी पर जुर्म साबित ना हो जाए, (मतलब जुर्म की सच्ची गवाही ना मिल जाए) उसे मुजरिम ठहराना अथवा जुर्म साबित किये बिना ही सज़ा देना, सजा देने की मांग करना ...या सजा देने की पैरवी करना अन्याय और अत्याचार है।

    ... निसंदेह अत्याचारी कभी सफल नहीं हो सकते [कुरआन 6:21]

    ... निश्चय ही वह अत्याचारियों को पसंद नहीं करता [42:40]

    ... जो लोगो पर ज़ुल्म करते हैं और नाहक ज्यादतियां करते हैं। ऐसे लोगों के लिए दुखद यातना है। [42:42]

    किन्तु जिसने धैर्य से काम लिया और क्षमा कर दिया वह उन कामों में से हैं जो (सफलता के लिए) आवश्यक ठहरा दिए गए हैं। [42:43]

    और मुझे तुम्हारे साथ न्याय का हुक्म है.... [कुरआन 42:15]

    और यह बस्तियां वह हैं जिन्होंने अत्याचार किया और हमने उन्हें विनष्ट कर दिया.... [18:59]
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    आतंकवाद और इस्लाम!

  • Tuesday, August 23, 2011
  • by
  • Shah Nawaz
  • आज सारे विश्व को आतंकवाद नामक दानव ने घेरा हुआ है। आमतौर पर आतंकवाद किसी वर्ग अथवा सरकार से उपजी प्रतिशोध की भावना से शुरू होता है। इसके मुख्यतः दो कारण होते है, पहला यह कि किसी वर्ग से जो अपेक्षित कार्य होते हैं उसके द्वारा उनको ना करना तथा दूसरा कारण ऐसे कार्यों को होना जिनकी अपेक्षा नहीं की गई है। मगर आमतौर पर ऐसे प्रतिशोधिक आंदोलन अधिक समय तक नहीं चलते हैं। हाँ शासक वर्ग द्वारा हल की जगह दमनकारी नीतियां अपनाने के कारणवश अवश्य ही यह लम्बे समय तक चल सकते है। ऐसे आंदोलनों में अक्सर अर्थिक हितों की वजह से बाहरी हस्तक्षेप और मदद जुड़ जाती है और यही वजह बनती है प्रतिशोध के आतंकवाद के स्तर तक व्यापक बनने की। कोई भी हिंसक आंदोलन धन एवं हथियारों की मदद मिले बिना फल-फूल नहीं सकता है। इन हितों में राजनैतिक, जातीय, क्षेत्रिए तथा धार्मिक हित शामिल होते हैं। बाहरी शक्तियों के सर्मथन और धन की बदौलत यह आंदोलन आंतकवाद की राह पर चल निकलते हैं और सरकार के लिए भस्मासुर बन जाते हैं। तब ऐसे आंदोलन क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं रह जाते, बल्कि संगठित होकर सशक्त व्यापार की तरह सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ाए जाते हैं।

    जब बात धार्मिक हितों की होती है तो ऐसे संगठन धार्मिक ग्रन्थों का अपने हिसाब से विश्लेषण करके धर्म की सही समझ नहीं रखने वाले लोगों को अपने जाल में फांस लेते हैं। जैसा कि अक्सर सुनने में आता है कि आतंकवादी ट्रेनिंग सेंटरों में यह समझाया जाता है कि ईश्वर (अल्लाह) ने काफिरों को कत्ल करने का हुक्म दिया है। ज़रा सी समझ रखने वाला यह समझ सकता है कि अगर ईश्वर काफिरों को कत्ल करने का हुक्म देता तो वह उनको पैदा ही क्यों करता? बल्कि ईश्वर कुरआन में फरमाता है कि वह अपने बन्दों से एक माँ से भी कई गुणा अधिक प्रेम करता है, चाहे वह उसे ईश्वर माने अथवा ना माने और अपने गुमराह बन्दे का भी अंतिम सांस तक वापिस सही राह पर लौट कर आने का इंतज़ार करता है।

    कारून नामक खलनायाक को इतिहास में एक बहुत बड़े इंसानियत एवं धर्म विरोधी के रूप में जाना जाता है। एक बार उसने लोगों को इकटठा किया और मुसा (अ.) से सबके सामने मालूम किया कि बलात्कार के गुनाह पर आपका कानून क्या कहता है? मुसा (अ.) के जवाब देने पर करून ने एक औरत के द्वारा उनपर अस्मिता लूटने का झूठा इल्ज़ाम लगावाया, इस इल्ज़ाम पर मुसा (अ.) को बहुत गुस्सा आया। मुसा (अ.) का गुस्सा देख कर उस महिला ने सारा सच साफ-साफ उगल दिया। इस पर मूसा ने ईश्वर से प्रार्थना की तो ईश्वर ने कहा कि "हमने धरती को तुम्हारे अधीन कर दिया है, तुम उसे जैसा चाहे हुक्म दे सकते हो।" मुसा ने धरती को हुक्म दिया की वह कारून को अपने अन्दर समा ले, इस पर धरती ने उसके बदन का कुछ हिस्सा अपने अंदर समा लिया। यह देख कर कारून ने मुसा से अपना जूर्म कुबूल करते हुए माफी मांगी। लेकिन वह बहुत अधिक गुस्से में थे, वह धरती को हुक्म देते गए और कारून माफी मांगता गया। आखिर में कारून पूरा का पूरा धरती में समा गया, इस पर स्वंय ईश्वर ने मुसा से कहा कि "मेंरा बन्दा तुझ से माफी मांगता रहा और तुने उसे माफ नही किया? मेरे जलाल की कसम अगर वह एक बार भी मुझसे माफी मांगता तो मैं अवश्य ही उसे माफ कर देता।" उपरोक्त बात से पता चलता है कि मेरा रब अपने बन्दों से कैसा प्यार करने वाला और कैसा माफ करने वाला है कि कारून जैसे गुनाहगार को भी माफ करने के लिए फौरन तैयार है जिसने स्वयं को ईश्वर घोषित किया हुआ था।

    आतंकवादी संगठन अक्सर ही उन आयतों (श्लोक) का गलत विश्लेषण करते हैं जिनमें ईश्वर युद्ध के समय ईमान रखने वालों को उनके विरूद्ध युद्ध का ऐलान करने वालों से डर कर भागने की जगह जम कर युद्ध करने का आह्वान करता है। यह बिलकुल ऐसा ही है, जैसे अपने देश के वीर जवानों को युद्ध के लिए तैयार करने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है तथा कमांडर उनमें जोश भरते हैं. अक्सर इस्लाम विरोधी भी आतंकवादियों की ही तरह  इन आयतों को सही संदर्भ में समझने की कोशिश नहीं करते हैं और इस्लाम के विरोध में उतर आते हैं। अगर ध्यान से देखा जाए तो इस सतह पर दोनो एक ही तरह का कार्य रहें हैं।

    इस्लाम यह अनुमति नहीं देता है कि एक मुसलमान किसी भी परिस्थिति में किसी गैर-मुस्लिम (जो इस्लाम के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार नहीं करता) के साथ बुरा व्यवहार करे. इसलिए मुसलमानों को किसी ग़ैर-मुस्लिम के खिलाफ आक्रमण की, डराने की, आतंकित करने, उसकी संपत्ति गबन करने की, उसके सामान के अधिकार से उसे वंचित करने की, उसके ऊपर अविश्वास करने की, उसकी मजदूरी देने से इनकार करने की, उनके माल की कीमत अपने पास रोकने की (जबकि उनका माल खरीदा जाए) या (अगर साझेदारी में व्यापार है तो) उसके मुनाफे को रोकने की अनुमति नहीं है.

    अगर ध्यान से देखा जाए तो पता चलता है कि इस्लाम केवल उन ग़ैर मुस्लिमों से युद्ध करने की अनुमति देता है जो कि मुसलमानों के खिलाफ युद्ध का ऐलान करें तथा उनको उनके घरों से बेदखल कर दें अथवा इस तरह के कार्य करने वालों का साथ दें। ऐसी हालत में मुसलमानों को अनुमति है ऐसा करने वालो के साथ युद्ध करे और उनकी संपत्ति जब्त करें.

    [60:8] अल्लाह तुम्हे इससे नहीं रोकता है कि तुम उन लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करो और उनके साथ न्याय करो, जिन्होंने तुमसे धर्म के मामले में युद्ध नहीं किया और ना तुम्हे तुम्हारे अपने घर से निकाला. निस्संदेह अल्लाह न्याय करने वालों को पसंद करता है.

    [60:9] अल्लाह तो तुम्हे केवल उन लोगो से मित्रता करने से रोकता है जिन्होंने धर्म के मामले में तुमसे युद्ध किया और तुम्हे तुम्हारे अपने घरों से निकला और तुम्हारे निकाले जाने के सम्बन्ध में सहायता की. जो लोग उनसे मित्रता करें वही ज़ालिम हैं.

     [2:190] और अल्लाह के मार्ग मं उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़ें, किन्तु ज़्यादती ना करो। निसन्देःह अल्लाह ज़्यादती करने वालों को पसंद नहीं करता।

    किसी भी बेगुनाह को कत्ल करने के खिलाफ ईश्वर स्वयं कुरआन में फरमाता हैः

    इसी कारण हमने इसराईल की सन्तान के लिए लिख दिया था, कि जिसने किसी व्यक्ति को किसी के ख़ून का बदला लेने या धरती में फ़साद फैलाने के के जुर्म के अतिरिक्त किसी और कारण से मार डाला तो मानो उसने सारे ही इंसानों की हत्या कर डाली। और जिसने उसे जीवन प्रदान किया, उसने मानो सारे इंसानों को जीवन प्रदान किया। उनके पास हमारे रसूल (संदेशवाहक) स्पष्ट प्रमाण ला चुके हैं, फिर भी उनमें बहुत-से लोग धरती में ज़्यादतियाँ करनेवाले ही हैं [5:32]



    इस बारे में अल्लाह (ईष्वर) के अंतिम संदेषवाहक मुहम्मद (स.) का हुक्म है किः

    "जो ईश्वर और आखिरी दिन (क़यामत के दिन) पर विश्वास रखता है, उसे हर हाल में अपने मेहमानों का सम्मान करना चाहिए, अपने पड़ोसियों को परेशानी नहीं पहुंचानी चाहिए और हमेशा अच्छी बातें बोलनी चाहिए अथवा चुप रहना चाहिए." (Bukhari, Muslim)

    "जिसने मुस्लिम राष्ट्र में किसी ग़ैर-मुस्लिम नागरिक के दिल को ठेस पहुंचाई, उसने मुझे ठेस पहुंचाई." (Bukhari)

    "जिसने एक मुस्लिम राज्य के गैर-मुस्लिम नागरिक के दिल को ठेस पहुंचाई, मैं उसका विरोधी हूँ और मैं न्याय के दिन उसका विरोधी होउंगा." (Bukhari)

    "न्याय के दिन से डरो; मैं स्वयं उसके खिलाफ शिकायतकर्ता रहूँगा जो एक मुस्लिम राज्य के गैर-मुस्लिम नागरिक के साथ गलत करेगा या उसपर उसकी जिम्मेदारी उठाने की ताकत से अधिक जिम्मेदारी डालेगा अथवा उसकी किसी भी चीज़ से उसे वंचित करेगा." (Al-Mawardi)

    "अगर कोई किसी गैर-मुस्लिम की हत्या करता है, जो कि मुसलमानों का सहयोगी था, तो उसे स्वर्ग तो क्या स्वर्ग की खुशबू को सूंघना तक नसीब नहीं होगा." (Bukhari).

    आंदोलनों चाहे छोटे स्तर पर हों अथवा आतंकवादी रूप ले चुके हों, इनको केवल शक्ति बल के द्वारा नहीं दबाया जा सकता है, बल्कि जितना अधिक शक्ति बल का प्रयोग किया जाता है उतने ही अधिक ताकत से ऐसे आंदालन फल-फूलते हैं। क्योंकि आतंकवादी संगठन बल प्रयोग को लोगो के सामने अपने उपर ज़ुल्म के रूप में आसानी से प्रस्तुत करते हैं। तथा और भी अधिक आसानी से बेवकूफ लेते हैं। ऐसे में आतंकवादी आंदोलन से संबधित पूरे के पूरे वर्ग को ही घृणा और संदेह की निगाह से देखा जाना मुश्किल को और भी बढ़ा देता है। बल्कि ऐसे आंदोलनों के मुकाबले के लिए सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा बल प्रयोग जैसे सभी विकल्पों को एक साथ लेकर चलना चाहिए। वहीं हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि पूरे समाज में आतंकवाद के खिलाफ जागरूकता फैलाई जाए।

    आज ऐसी आतंकवादी सोच के खिलाफ पूरे समाज को एकजुट होकर कार्य करने की आवश्यकता है। इसके लिए सबसे पहला और बुनियादी कार्य आपसी भाईचारे को बढ़ाना तथा भ्रष्टाचार को समाप्त करना है।


    आईये मिलकर इस मुहिम को आगे बढ़ाएं।


    -शाहनवाज़ सिद्दीकी






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    इंसाफ के दिन का इंतजार क्यों?

  • Friday, July 22, 2011
  • by
  • Shah Nawaz
  • कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि ईश्वर 'इंसाफ के दिन' अर्थात 'क़यामत' का इंतजार क्यों करता है, आदमी इधर हलाक हुआ उधर उसका हिसाब करे। अल्लाह ने इन्साफ का दिन तय किया, जहाँ वह सभी मनुष्यों को एक साथ इकठ्ठा करेगा ताकि इन्साफ सबके सामने हो। यह इसलिए भी हो सकता है, क्योंकि बहुत से पुन्य और पाप ऐसे होते हैं जिनका सम्बन्ध दुसरे व्यक्ति या व्यक्तियों से होता है। इसलिए "इन्साफ के दिन" उन सभी सम्बंधित लोगो का इकठ्ठा होना ज़रूरी है। जब इन्साफ होगा तब ईश्वर गवाह भी पेश करेगा, कई बार तो हमारे शरीर के अंग ही अच्छे-बुरे कर्मो के गवाह होंगे।

    दूसरी बात यह है कि मनुष्य कुछ ऐसे कर्म भी करते हैं जिसका पाप या पुन्य बढ़ने का सिलसिला इस दुनिया के समाप्त होने तक बढ़ता रहेगा। जिस व्यक्ति ने कोई "गुनाह" पहली बार किया, उसने आने वाले समय के लिए उस गुनाह का रास्ता औरों को भी बता दिया। उस "गुनाह" को अमुक व्यक्ति कि बाद जितने भी लोग करते जाएँगे, उन सभी के पापो में उस पहले व्यक्ति की भी ज़िम्मेदारी बनती है, इसलिए उन लोगों के गुनाहों की सजा उस पहले व्यक्ति को भी होगी। जैसे कि जिस इंसान ने पहली बार किसी दुसरे इंसान की हत्या की होगी, तो उसके खाते में जितने भी इंसानों कि हत्या होगी उन सबका पाप लिखा जायेगा। क्योंकि उसने क़यामत तक के इंसानों को कुकर्म का एक नया रास्ता बताया।

    इसे इस तरह समझा जा सकता है, मान लीजिये किसी व्यक्ति ने दुसरे व्यक्ति की हत्या के इरादे से किसी सड़क पर गड्ढा खोदा, उसमें वह व्यक्ति गिर कर मर गया। लेकिन गड्ढा कई सालों तक वहां बरकरार रहा और उसमें कई और व्यक्ति भी गिर कर मरे अथवा घायल हुए, इस स्तिथि में इस पाप के लिए केवल पहला ही नहीं बल्कि जितने व्यक्तियों की मृत्यु होगी अथवा घायल होंगे उन सभी का पाप गड्ढा खोदने वाले व्यक्ति के सर पर होगा। ऐसे ही अगर किसी ने कोई बुरा रास्ता किसी दुसरे व्यक्ति को दिखाया तो जब तक उस रास्ते पर चला जाता रहेगा। अर्थात दूसरा व्यक्ति तीसरे को, फिर दूसरा और तीसरा क्रमशः चौथे एवं पांचवे को तथा दूसरा, तीसरा, चौथा एवं पांचवा व्यक्ति मिलकर आगे जितने भी व्यक्तियों को पाप का रास्ता दिखाएंगे उसका पाप पहले व्यक्ति को भी मिलेगा, पहला व्यक्ति सभी के गलत राह पर चलने का जिम्मेदार होगा। क्योंकि उसी ने वह रास्ता दिखाया है, अगर वह बुराई की राह दुसरे को दिखता ही नहीं तो दुसरे, तीसरे, चौथे और इससे आगे के व्यक्तियों तक वह बुराई पहुँचती ही नहीं या कम से कम उसके ज़रिये तो नहीं पहुँचती। इस तरह इस ज़ंजीर में से जो भी व्यक्ति जानबूझ कर और लोगो को पाप के रास्ते पर डालेगा वह भी उससे आगे के सभी व्यक्तियों के पापो का पूरा-पूरा भागीदार होगा।

    ठीक इसी तरह अगर कोई भलाई का काम करता है जैसे कि पानी पीने के लिए प्याऊ बनाया तो जब तक वह प्याऊ है, तब तक उसका पुन्य अमुक व्यक्ति को मिलता रहेगा, चाहे वह कब का मृत्यु को प्राप्त हो गया हो। या फिर कोई किसी एक व्यक्ति को भलाई की राह पर ले कर आया, तो जो व्यक्ति भलाई कि राह पर आया वह आगे जितने भी व्यक्तियों को भलाई कि राह पर लाया और अच्छे कार्य किये, उन सभी के अच्छे कार्यो का पुन्य पहले व्यक्ति को और साथ ही साथ सम्बंधित व्यक्तियों को भी पूरा पूरा मिलता रहेगा, यहाँ तक कि इस पृथ्वी के समाप्ति का दिन आ जाये।

    इससे पता चलता है कि मृत्यु के बाद फ़ौरन हिसाब-किताब होना और उसका फल मिलना व्यवहारिक नहीं है, कर्मों का हिसाब करते समय अर्थात 'इंसाफ के दिन' धरती के आखिरी कुकर्म अथवा सुकर्म करने वाले की पेशी होना आवश्यक है।


    अल्लाह इन्साफ के दिन पर कहता है:

    "और हम वजनी, अच्छे न्यायपूर्ण कार्यो को इन्साफ के दिन (क़यामत) के लिए रख रहे हैं फिर किसी व्यक्ति पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा, यद्दपि वह (कर्म) राइ के दाने ही के बराबर हो, हम उसे ला उपस्थित करेंगे।और हिसाब करने के लिए हम काफी हैं। (21/47)"
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    प्रश्न - उत्तर

  • Thursday, September 2, 2010
  • by
  • Shah Nawaz


  • आप यहाँ पर टिपण्णी (Comments) के माध्यम से इस्लाम धर्म से सम्बंधित प्रश्न मालूम कर सकते हैं, अगर किसी को किसी प्रश्न का उत्तर मालूम हो तो वह उसका उत्तर भी दे सकता है. केवल वह प्रश्न ही प्रकाशित किए जाएंगे जिनकी भाषा सभ्य और संयमित होगी. विषय से हटकर की गई टिपण्णी को निरस्त कर दिया जाएगा.
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    दोष केवल मीडिया का नहीं बल्कि हमारा भी है

  • Thursday, July 22, 2010
  • by
  • Shah Nawaz
  • केवल मीडिया को दोष देने से कुछ भी हासिल नहीं होगा, हो सकता है आपकी बात में कुछ सत्य हो, लेकिन पूरा सत्य है, ऐसा मैं नहीं मानता हूँ. चाहे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, तिल को तो ताड़ बनाया जा सकता है, लेकिन बिना तिल के ताड़ बनाना असंभव है. एक मुसलमान होने के नाते हमारा यह फ़र्ज़ है की हम अपने अन्दर फैली बुराईयों को दूर करने की कोशिश करें. केवल यह सोच कर संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है कि दुसरे समुदायों के अनुयायियों के द्वारा भी तो वही कार्य किया जा रहा है. हमारी कोशिश स्वयं को तथा अपने समाज को बुराइयों के दलदल से बाहर निकलने की होनी चाहिए, जिससे ना केवल भारत वर्ष बल्कि पुरे विश्व में शान्ति स्थापित हो सके.

    आज हम माने अथवा ना माने लेकिन किसी ना किसी स्तर पर अवश्य पडौसी देश के द्वारा चलाए जा रहे दुष्प्रचार अथवा बेरोज़गारी के कारण हमारे देश के नौजवान इंसानियत के दुश्मनों की चालों का शिकार हो रहे हैं. यह एक खुली किताब है कि देश के दुश्मन चाहे वह पडौसी हो अथवा अपने ही देश के तथाकथित राष्ट्रवादी, आम जनों को इनकी चालों को समझ कर उनका मुंह-तोड़ जवाब देना अति आवश्यक है. और ऐसा केवल और केवल आपसी सद्भाव तथा भाई-चारे से ही संभव है.

    दूसरों पर ऊँगली उठाना थोडा आसान कार्य है, लेकिन अपने अन्दर की गंदगी को साफ़ करना थोडा मुश्किल कार्य.


    शरीफ खान जी का लेख:
    muslims and media भारत में मुसलमानों की छवि और मीडिया का चरित्र sharif khan
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    कहत शाहनवाज़ सुनो भाई कबीरा

  • Tuesday, July 13, 2010
  • by
  • Shah Nawaz
  • "कहत कबीरा" ब्लॉग के संजय गोस्वामी जी और भांडाफोडू ब्लॉग के शर्मा जी आप इस बार की तरह अक्सर ही इस्लाम धर्म के बारे में कुछ झूटी और मन-गढ़त कहानिया लाते हो और उसे कुरआन की आयतों से जोड़ने की नाकाम कोशिश करते हो. बात को घुमाने की जगह अगर आपके पास अपनी बात की दलील है तो उसे पेश करिए, ताकि सार्थक बात हो सके.

    लोगों ने कुरआन के महत्त्व तथा उसकी रुतबे को लोगो के दिल से कम करने के इरादे से कुरआन को शायरी कहना शुरू कर दिया था जबकि कुरआन शायरी नहीं बल्कि ईश्वर (अल्लाह) का ज्ञान है. शायरी में अक्सर महिमा मंडन करने के इरादे से झूटी और फरेबी बातों का भी प्रयोग किया जाता है, जबकि कुरआन इन सब बातों से पाक है. इस पर ईश्वर ने कुरआन में फ़रमाया:-

    [36:69] हमने उस (नबी) को शायरी नहीं सिखाई और ना वह उसके लिए शोभनीय है बल्कि वह तो केवल अनुस्मृति और स्पष्ट कुरआन है.

    [36:70] ताकि वह उसे सचेत कर दे जो जीवंत हो और इनकार करने वालो पर बात सत्यापित हो जाए.

    वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इस्लाम में शयरी की बिलकुल भी मनाही नहीं है. बल्कि इकबाल जैसे शायरों के नाम के साथ रहमतुल्लाह (अल्लाह की रहमत) लगाया जाता है, और उन जैसे अनेकों शायरी की बहुत इज्ज़त होती है. अक्सर दिनी मदारिस में शायरी के जलसे भी आयोजित होते हैं. स्वयं रसूल अल्लाह मुहम्मद (स.) के सामने लोगों ने उनकी तारीफ़ में ना`त तथा अल्लाह की तारीफ में हम्द पढ़ी जो की शायरी की शक्ल में ही थे, जिस पर रसूल अल्लाह (स.) बेहद खुश हुए थे. और आज भी ना`त तथा हम्द पढ़े तथा लिखे जाते हैं. हाँ यह बात अवश्य है कि झूटी तारीफों और झूट के पुलिंदो के द्वारा गठित शायरी की अवश्य ही मनाही है और झूटी बातों के लिए मनाही हर धर्म में होती है.

    आप क्यों लोगो को गलत और बिना दलील की बातों से गुमराह करने की कोशिश करते हैं?
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