केवल मीडिया को दोष देने से कुछ भी हासिल नहीं होगा, हो सकता है आपकी बात में कुछ सत्य हो, लेकिन पूरा सत्य है, ऐसा मैं नहीं मानता हूँ. चाहे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, तिल को तो ताड़ बनाया जा सकता है, लेकिन बिना तिल के ताड़ बनाना असंभव है. एक मुसलमान होने के नाते हमारा यह फ़र्ज़ है की हम अपने अन्दर फैली बुराईयों को दूर करने की कोशिश करें. केवल यह सोच कर संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है कि दुसरे समुदायों के अनुयायियों के द्वारा भी तो वही कार्य किया जा रहा है. हमारी कोशिश स्वयं को तथा अपने समाज को बुराइयों के दलदल से बाहर निकलने की होनी चाहिए, जिससे ना केवल भारत वर्ष बल्कि पुरे विश्व में शान्ति स्थापित हो सके.
आज हम माने अथवा ना माने लेकिन किसी ना किसी स्तर पर अवश्य पडौसी देश के द्वारा चलाए जा रहे दुष्प्रचार अथवा बेरोज़गारी के कारण हमारे देश के नौजवान इंसानियत के दुश्मनों की चालों का शिकार हो रहे हैं. यह एक खुली किताब है कि देश के दुश्मन चाहे वह पडौसी हो अथवा अपने ही देश के तथाकथित राष्ट्रवादी, आम जनों को इनकी चालों को समझ कर उनका मुंह-तोड़ जवाब देना अति आवश्यक है. और ऐसा केवल और केवल आपसी सद्भाव तथा भाई-चारे से ही संभव है.
दूसरों पर ऊँगली उठाना थोडा आसान कार्य है, लेकिन अपने अन्दर की गंदगी को साफ़ करना थोडा मुश्किल कार्य.
शरीफ खान जी का लेख:
muslims and media भारत में मुसलमानों की छवि और मीडिया का चरित्र sharif khan
आज हम माने अथवा ना माने लेकिन किसी ना किसी स्तर पर अवश्य पडौसी देश के द्वारा चलाए जा रहे दुष्प्रचार अथवा बेरोज़गारी के कारण हमारे देश के नौजवान इंसानियत के दुश्मनों की चालों का शिकार हो रहे हैं. यह एक खुली किताब है कि देश के दुश्मन चाहे वह पडौसी हो अथवा अपने ही देश के तथाकथित राष्ट्रवादी, आम जनों को इनकी चालों को समझ कर उनका मुंह-तोड़ जवाब देना अति आवश्यक है. और ऐसा केवल और केवल आपसी सद्भाव तथा भाई-चारे से ही संभव है.
दूसरों पर ऊँगली उठाना थोडा आसान कार्य है, लेकिन अपने अन्दर की गंदगी को साफ़ करना थोडा मुश्किल कार्य.
शरीफ खान जी का लेख:
muslims and media भारत में मुसलमानों की छवि और मीडिया का चरित्र sharif khan
16 comments:
तिल को तो ताड़ बनाया जा सकता है, लेकिन बिना तिल के ताड़ बनाना असंभव है
शाहानावाज़ भाई,आपसे सहमत हूँ
शाहानावाज़ भाई,आपसे सहमत हूँ
जब कुशंकाएं,द्वेष,आदि हमारे भीतर होता है,तभी दूसरो को उकसाने के चांस मिलते है। पहले स्वयं को मज़बूत व धैर्यवान बनना होगा।
शाह नवाज़ साहब ठीक ही कह रहे है
"दूसरों पर ऊँगली उठाना थोडा आसान कार्य है, लेकिन अपने अन्दर की गंदगी को साफ़ करना थोडा मुश्किल कार्य."
यार तफ्रीबाज़ क्यों एक ही कमेन्ट को बार-बार दोहराते हो? डिलीट करेने में बड़ी मेहनत लगती है यार...
दूसरों पर ऊँगली उठाना थोडा आसान कार्य है, लेकिन अपने अन्दर की गंदगी को साफ़ करना थोडा मुश्किल कार्य.
सहमत
आपके विचारों से सहमत |
हम भले तो जग भला
जी जनाब! बात तो सही है लेकिन उस वकत का इंतज़ार कब ख़तम होगा, जब सभी के दिलों में ये भावना जन्म लेगी और सब ठीक होगा ??
इसी के इंतजार कर रहा हूँ ? अभी तो ये सब कुछ देखकर दुःख होता है.
अच्छे विचार, सभी धर्मों में इनको फ़ैलाने की आवश्यकता है.
शाहनवाज साहब ,
आपको पढना अच्छा लगता है ! शुभकामनायें !
दो दिन पहले रोड टू संगम देखी थी... कुछ ऐसी ही कहानी बयाँ कर रही थी..
सार्थक विचारों की प्रस्तुती ,सफाई की शुरुआत खुद से ही होनी चाहिए | शहनवाज जी शरीफ खान जी को प्रोफाइल तो पूरा लिखने के लिए आग्रह कीजिये | पता नहीं लोग ब्लॉग तो लिखते हैं लेकिन प्रोफाइल छुपाते क्यों हैं ?
मुसलमान होने के नाते हमारा यह फ़र्ज़ है की हम अपने अन्दर फैली बुराईयों को दूर करने की कोशिश करें.
आप से सहमत
आपके विचार प्रशंसनीय हैं.
जो दिल खोजा आपना मुझसा बुरा न कोय!
किसी ना किसी स्तर पर अवश्य पडौसी देश के द्वारा चलाए जा रहे दुष्प्रचार अथवा बेरोज़गारी के कारण हमारे देश के नौजवान इंसानियत के दुश्मनों की चालों का शिकार हो रहे हैं. यह एक खुली किताब है कि देश के दुश्मन चाहे वह पडौसी हो अथवा अपने ही देश के तथाकथित राष्ट्रवादी, आम जनों को इनकी चालों को समझ कर उनका मुंह-तोड़ जवाब देना अति आवश्यक है. और ऐसा केवल और केवल आपसी सद्भाव तथा भाई-चारे से ही संभव है.
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