कहत शाहनवाज़ सुनो भाई कबीरा

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  • Tuesday, July 13, 2010
  • by
  • Shah Nawaz
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  • "कहत कबीरा" ब्लॉग के संजय गोस्वामी जी और भांडाफोडू ब्लॉग के शर्मा जी आप इस बार की तरह अक्सर ही इस्लाम धर्म के बारे में कुछ झूटी और मन-गढ़त कहानिया लाते हो और उसे कुरआन की आयतों से जोड़ने की नाकाम कोशिश करते हो. बात को घुमाने की जगह अगर आपके पास अपनी बात की दलील है तो उसे पेश करिए, ताकि सार्थक बात हो सके.

    लोगों ने कुरआन के महत्त्व तथा उसकी रुतबे को लोगो के दिल से कम करने के इरादे से कुरआन को शायरी कहना शुरू कर दिया था जबकि कुरआन शायरी नहीं बल्कि ईश्वर (अल्लाह) का ज्ञान है. शायरी में अक्सर महिमा मंडन करने के इरादे से झूटी और फरेबी बातों का भी प्रयोग किया जाता है, जबकि कुरआन इन सब बातों से पाक है. इस पर ईश्वर ने कुरआन में फ़रमाया:-

    [36:69] हमने उस (नबी) को शायरी नहीं सिखाई और ना वह उसके लिए शोभनीय है बल्कि वह तो केवल अनुस्मृति और स्पष्ट कुरआन है.

    [36:70] ताकि वह उसे सचेत कर दे जो जीवंत हो और इनकार करने वालो पर बात सत्यापित हो जाए.

    वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इस्लाम में शयरी की बिलकुल भी मनाही नहीं है. बल्कि इकबाल जैसे शायरों के नाम के साथ रहमतुल्लाह (अल्लाह की रहमत) लगाया जाता है, और उन जैसे अनेकों शायरी की बहुत इज्ज़त होती है. अक्सर दिनी मदारिस में शायरी के जलसे भी आयोजित होते हैं. स्वयं रसूल अल्लाह मुहम्मद (स.) के सामने लोगों ने उनकी तारीफ़ में ना`त तथा अल्लाह की तारीफ में हम्द पढ़ी जो की शायरी की शक्ल में ही थे, जिस पर रसूल अल्लाह (स.) बेहद खुश हुए थे. और आज भी ना`त तथा हम्द पढ़े तथा लिखे जाते हैं. हाँ यह बात अवश्य है कि झूटी तारीफों और झूट के पुलिंदो के द्वारा गठित शायरी की अवश्य ही मनाही है और झूटी बातों के लिए मनाही हर धर्म में होती है.

    आप क्यों लोगो को गलत और बिना दलील की बातों से गुमराह करने की कोशिश करते हैं?

    23 comments:

    शेरघाटी said...

    ऐसे लोग नशे के आदी हैं..और ऐसा नशा दुनिया के एक ख़ास शहर में काफ़ी मात्रा में मुफ्त वितरित किया जाता है...

    नईम said...

    भाई ऐसे लोग एक मिशन के तिहत काम करते हैं ..और इनका एक सूत्रीय उद्देश्य रहता है..क्या कभी सूरज..का प्रकाश कम हुआ है...
    आसमान में थूकने दो..

    Jandunia said...

    शानदार पोस्ट

    Unknown said...

    इन्हें तो न इतिहास का पता है..न किसी किरदार या इतिहासिक व्यक्तित्व के सही नाम का..

    talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

    [36:69] हमने उस (नबी) को शायरी नहीं सिखाई और ना वह उसके लिए शोभनीय है बल्कि वह तो केवल अनुस्मृति और स्पष्ट कुरआन है.

    talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

    [36:70] ताकि वह उसे सचेत कर दे जो जीवंत हो और इनकार करने वालो पर बात सत्यापित हो जाए.

    talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

    इस्लाम में शयरी की बिलकुल भी मनाही नहीं है. बल्कि इकबाल जैसे शायरों के नाम के साथ रहमतुल्लाह (अल्लाह की रहमत) लगाया जाता है, और उन जैसे अनेकों शायरी की बहुत इज्ज़त होती है. अक्सर दिनी मदारिस में शायरी के जलसे भी आयोजित होते हैं. स्वयं रसूल अल्लाह मुहम्मद (स.) के सामने लोगों ने उनकी तारीफ़ में ना`त तथा अल्लाह की तारीफ में हम्द पढ़ी जो की शायरी की शक्ल में ही थे, जिस पर रसूल अल्लाह (स.) बेहद खुश हुए थे. और आज भी ना`त तथा हम्द पढ़े तथा लिखे जाते हैं

    talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

    झूटी तारीफों और झूट के पुलिंदो के द्वारा गठित शायरी की अवश्य ही मनाही है और झूटी बातों के लिए मनाही हर धर्म में होती है.

    अनामिका की सदायें ...... said...

    वो कहते हैं न lack knowledge is dangerous...वही हिसाब किताब लगता है

    Mohammed Umar Kairanvi said...

    शाबाश, कबीरे ने कहत उमर भी पब्लिश नहीं किया था,

    इनकी मक्‍कारी तो देखो लिखते हैं ''इस पर मुहम्मद ने कहा कि अल्लाह ने मुझे शायरी करना नहीं सिखाया है .कुरआन सूरे -या सीन ३३:६९
    -
    जबकि कुरआन की 33 नम्‍बर की सूरत का नाम 'अल-अहज़ाब' है
    और बात यह है जो आपने दी हैः
    [36:69] हमने उस (नबी) को शायरी नहीं सिखाई और ना वह उसके लिए शोभनीय है बल्कि वह तो केवल अनुस्मृति और स्पष्ट कुरआन है.

    सहसपुरिया said...

    अमा भाई, आप भी किन लोगो की बात कर रहे हैं, इस तरह के जोकर तो आते जाते रहते हैं,
    संघ ने क्या क्या नही किया ? इसराईल तक से मंत्र लेकर आए, जिस तरह इसराईल खुवार हो रहा है, ये भी खुवार हो गये हैं,
    इन लोगो के नसीब मै ज़िल्लत के सिवा कुछ नही है....
    आपका थप्पड़ काफ़ी दमदार है.....

    सहसपुरिया said...

    GOOD JOB

    zeashan haider zaidi said...

    कुरआन की आयतों के साथ हमेशा ही दुश्मनों ने झूठी कहानियां जोड़ने की कोशिश की है. यह कोई नई बात नहीं!

    zeashan haider zaidi said...

    ये साहबान सूरे यासीन को 36 की बजाये 33 वीं सूरे पढ़ गए. और खुदा का करिश्मा देखिये की यह आयत इनकी नसीहत करती और नबी की तारीफ़ करती दिखाई दे रही है.
    (33.69) ऐ ईमानवालों (ख़बरदार कहीं) तुम लोग भी उनके से न हो जाना जिन्होंने मूसा को तकलीफ दी तो अल्लाह ने उनकी तोहमतों से मूसा को बरी कर दिया और मूसा अल्लाह के नज़दीक एक रवादार (इज़्ज़त करने वाले) (पैग़म्बर) थे.

    Sumit Khanna said...

    Shahnawaj ji aap kyo in logo ke karan dukhi hokar apna samay barbaad karte hai........ inka to kaam hi logo ko bhramit karna hai......

    Aapse nivedan hai ki apna samay sarthak lekhan me hi lagae.....

    Sharif Khan said...

    पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम) के खिलाफ़ मक्के के काफ़िर अनेक प्रकार की बातें बनाते थे. कभी उनको जादूगर, कभी जादू से प्रभावित और कभी शायर कह कर बदनाम करने की कोशिश करते थे. जब कि वह जानते थे की हम झूठ बोल रहे हैं. (जैसे की कुरान की ग़लत व्याख्या करने वाले खूब जानते हैं की हम झूठ बोल रहे हैं) तो इसके सम्बन्ध में कुरान की ३६ वें अध्याय की ६९ वीं आयत में अल्लाह फरमाता है कि हम ने इनको शायरी नहीं सिखाई है और न ही शायरी इन को शोभा देती है.
    ऐसा इसलिए कि शायर के कथन और कर्म में परस्पर विरोधाभास होता है. दूसरी बात यह कि, शायरी में अतिश्योक्ति का समावेश होता है जो झूठ पर आधारित होती है.
    कुरान की ग़लत व्याख्या करके अपनी मुस्लिम दुश्मनी को उजागर करने वालों के लिए बेहतर यह है कि कुरान अगर सीखना है तो सही प्रकार से सीखें वर्ना जिस प्रकार विभिन्न प्रकार के आक्षेप लगा कर मक्के के काफ़िर सफल न हुए उसी प्रकार ग़लत व्याख्या करके तो यह लोग भी अपनी उर्जा नष्ट करके क्यों अपना मज़ाक़ बनवाते हैं.

    The Straight path said...

    zeashan zaidiसे सहमत

    सुज्ञ said...

    शाह नवाज़ साहब,
    यह तो स्पष्ठ करिये कि कुरआन एक श्रेष्ठ सर्वोत्तम शायरी है या नहिं? कि कोई भी इन्सान उस जैसी काव्यविद्या में एक आयत तक नहिं बना सकता।
    कुरआन सूरा अश २६:२२१ से २२६ में अल्लाह का श्ब्दशः क्या आदेश है।

    Dr. Zakir Ali Rajnish said...

    कुछ लोग दुनिया में उल्टी बातें करने के लिए ही पैदा होते हैं। ऐसे लोगों का कोई इलाज नहीं होता, उन्हें उनके हाल परछोड़ दिया जाना चाहिए।
    ................
    पॉल बाबा का रहस्य।
    आपकी प्रोफाइल कमेंट खा रही है?.

    zeashan haider zaidi said...

    @सुज्ञ जी,
    किसी भी शायरी में दो चीज़ें होती हैं,
    १. उसके नियम और कानून, जैसे की उर्दू में रदीफ़, काफिया, बहर और हिंदी में छंद, मात्रा इत्यादि.
    २. परवाज़-ए-तखईयुल यानी कल्पना की उड़ान. जो चीज़ नहीं है, उसे बढ़ा चढ़ा कर बताना.
    अगर कुरआन की बात की जाए तो वह अरबी शायरी के नियम कानूनों का पूरी तरह पालन करता है, लेकिन उसमें कल्पना की कोई उड़ान नहीं है बल्कि हर चीज़ हकीकत है.
    नियमों के अनुसार यह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ काव्य ग्रन्थ है, लेकिन इसके बावजूद यह किसी शायर का कलाम नहीं है. क्योंकि इसमें कल्पना की कोई उड़ान नहीं है.

    tension point said...

    @ जीशान जी हमें तो यह समझ नहीं आया कि जन्नत की कल्पना जो कुरआन में लिखी है वह कल्पना की उडान है या नहीं | आप जानते हैं ; आज के युग में उस तरह की जन्नत और जहन्नुम या स्वर्ग -नरक की जो हकीकत हमारे या आपके धर्म ग्रंथों में वर्णित है उसको सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कहीं पर भी साबित नहीं किया जा सकता |
    ऐसी स्थिति में आप का ये कहना तो स्वयं ही गलत है कि कुरआन में कल्पना की उड़ान नहीं है |
    @और भाई शाहनवाज जी और अन्य भाईयो क्यों मधुमक्खी (भंडा फोडू ) के छत्ते में हाथ डाल रहे हो फिर वह जिस तरह से छीछालेदर करता है वह हमें तक तो अच्छा नहीं लगता, तुम्हें क्या लगता होगा ? क्योंकि धर्म ग्रन्थ में सबका दखल नहीं होता जो इनका जानकर और भाषा का ज्ञाता हो वही बहस कर सकता है | और भंडा फोडू सभी बातें कुरआन की रौशनी में बताता है | फिर भी आप बज नहीं आते |

    बी एन शर्मा said...

    शहनवाज़ भाई .मेहरबानी करके उन मदरसों के बारे में बता दीजिये ,जहां पर श्हरारी के जलसे होते हैं ,और जहां रसूलल्लाह के सामने शायरी या नातें पढी जाती हों ,और जिस पर रसूलल्लाह खुश होते हैं .यह किस ज़माने की बात है?

    Parimal Mukherjee said...

    मै हर प्रबुद्ध और विवेकशील मुस्लिम बंधुओं से विनम्र निवेदन करता हूँ कृपया वे गहराई से इन web links को खोलकर पढ़ें और अपने विवेक और बुद्धि के द्वारा निर्णय करें कि क्या केवल एक मुस्लिम माता - पिता के घर पैदा होने मात्र से वे मजबूर हैं एक ऐसे विचार धारा को आजीवन ढोने के लिए जिस विचारधारा ने पूरी दुनिया में असंख्य बेकसूर इंसानों और जानवरों का विगत 1400 वर्षों से निर्ममता से क़त्ल करता आया है और आज तक कर रहा है ? क्या परम पिता परमात्मा के दिए हुए इस मानव मस्तिष्क का उपयोग हम सत्य को खोजने और समझने के लिए कभी न करें ? मुझे केवल आशा ही नहीं,वरण पूर्ण विश्वास है कि मेरे प्रबुद्ध,बुद्धिमान मुस्लिम बंधुओं की आत्मा इन links को अच्छी तरह पढने के बाद एक पल भी 'इस्लाम ' नाम के भयंकर खुनी विचारधारा को मानने से इनकार कर देगी,और आज वो वक्त आ गया है, हर प्रबुद्ध मुस्लिम को इस नफरत के अँधेरे कुएं से खुद बाहर निकलकर ज्यादा से ज्यादा मुस्लिमों को जागृत करके जल्द से जल्द इस खतरनाक विचारधारा को त्यागने के लिए प्रेरित करें,इसीमे सारी मानवता की भलाई निहित है : http://www.faithfreedom.org/testimonials.htm इन links को खोलने के लिए इसे सेलेक्ट करके copy कर लें और Google Search खोलकर पेस्ट कर दें I