शोभायमान आँखों वाली हूर!

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  • Tuesday, March 30, 2010
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  • Shah Nawaz
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  • हूर शब्द की अधिकतर गलत व्याख्या की गई है. हूर की धारणा समझना मुश्किल नहीं है.

    शब्द हूर, अहवार (एक आदमी के लिए) और हौरा (एक औरत के लिए) का बहुवचन है. इसका मतलब ऐसे इंसान से हैं जिसकी आँखों को "हवार" शब्द से संज्ञा दी गयी है. जिसका मतलब है ऐसी आंखे जिसकी सफेदी अत्यधिक सफ़ेद और काला रंग अत्यधिक काला हो.

    शब्द अहवार (हूर का एकवचन) भी शुद्ध या शुद्ध ज्ञान का प्रतीक है.

    शब्द हूर पवित्र कुरआन में चार बार आता है:

    1. Moreover, We shall join them to companions with beautiful, big and lustrous eyes”. (Al-Dukhan, 44:54)

    और यही नहीं, हम उनको ऐसे साथियों के साथ जोड़ देंगे जिनकी सुन्दर, बड़ी एवं शोभायमान (चमकदार) ऑंखें होंगी.

    2. “And We shall join them to companions, with beautiful, big and lustrous
    eyes”. (Al-Tur, 52:20)

    और हम उनको ऐसे साथियों के साथ जोड़ देंगे जिनकी सुन्दर, बड़ी एवं शोभायमान (चमकदार) ऑंखें होंगी.


    3. “Companions restrained (as to their glances), in goodly pavilions”. (Al-Rahman Verse 72)

    खेमो में रहने वाले साथी.

    4. “And (there will be) companions with beautiful, big and lustrous eyes”.
    (Al-Waqi’ah Verse 22)

    और (वहां) ऐसे साथी होंगे जिनकी सुन्दर, बड़ी एवं शोभायमान (चमकदार) ऑंखें होंगी.




    क्या आतंकवादियों अथवा नाहक क़त्ल करने वालों को जन्नत में हूरें मिलेंगी?


    ईश्वर के अंतिम संदेष्ठा, महापुरुष मौहम्मद (स.) की कुछ बातें लिख रहा हूँ, इन्हें पढ़ कर फैसला आप स्वयं कर सकते हैं:

    "जो ईश्वर और आखिरी दिन (क़यामत के दिन) पर विश्वास रखता है, उसे हर हाल में अपने मेहमानों का सम्मान करना चाहिए, अपने पड़ोसियों को परेशानी नहीं पहुंचानी चाहिए और हमेशा अच्छी बातें बोलनी चाहिए अथवा चुप रहना चाहिए." (Bukhari, Muslim)


    "जिसने मुस्लिम राष्ट्र में किसी ग़ैर-मुस्लिम नागरिक के दिल को ठेस पहुंचाई, उसने मुझे ठेस पहुंचाई." (Bukhari)

    "जिसने एक मुस्लिम राज्य के गैर-मुस्लिम नागरिक के दिल को ठेस पहुंचाई, मैं उसका विरोधी हूँ और मैं न्याय के दिन उसका विरोधी होउंगा." (Bukhari)

    "न्याय के दिन से डरो; मैं स्वयं उसके खिलाफ शिकायतकर्ता रहूँगा जो एक मुस्लिम राज्य के गैर-मुस्लिम नागरिक के साथ गलत करेगा या उसपर उसकी जिम्मेदारी उठाने की ताकत से अधिक जिम्मेदारी डालेगा अथवा उसकी किसी भी चीज़ से उसे वंचित करेगा." (Al-Mawardi)

    "अगर कोई किसी गैर-मुस्लिम की हत्या करता है, जो कि मुसलमानों का सहयोगी था, तो उसे स्वर्ग तो क्या स्वर्ग की खुशबू को सूंघना तक नसीब नहीं होगा." (Bukhari).


    एवं पवित्र कुरआन में ईश्वर ने कहा है कि:

    इसी कारण हमने इसराईल की सन्तान के लिए लिख दिया था, कि जिसने किसी व्यक्ति को किसी के ख़ून का बदला लेने या धरती में फ़साद फैलाने के के जुर्म के अतिरिक्त किसी और कारण से मार डाला तो मानो उसने सारे ही इंसानों की हत्या कर डाली। और जिसने उसे जीवन प्रदान किया, उसने मानो सारे इंसानों को जीवन प्रदान किया। उनके पास हमारे रसूल (संदेष्ठा) स्पष्‍ट प्रमाण ला चुके हैं, फिर भी उनमें बहुत-से लोग धरती में ज़्यादतियाँ करनेवाले ही हैं [5:32]

    जो ईश्वर के साथ किसी दूसरे इष्‍ट-पूज्य को नहीं पुकारते और न नाहक़ किसी जीव को जिस (के क़त्ल) को अल्लाह ने हराम किया है, क़त्ल करते है। और न वे व्यभिचार करते है - जो कोई यह काम करे तो वह गुनाह के वबाल से दोचार होगा [25:68]



    ईश्वर अच्छे कार्यो का स्वर्ग में क्या बदला देगा?

    इसके साथ ही यह बात समझना ज़रूरी है कि ईश्वर अच्छे कार्यो का स्वर्ग में क्या बदला देगा.

    पवित्र पैग़म्बर मुहम्मद (स.) ने फ़रमाया कि, "अल्लाह कहता है कि, मैंने अपने मानने वालो के लिए ऐसा बदला तैयार किया है जो किसी आँख ने देखा नहीं और किसी कान ने सुना नहीं है. यहाँ तक कि इंसान का दिल कल्पना भी नहीं कर सकता है." (बुखारी 59:8)


    पवित्र कुरआन भी ऐसे ही शब्दों में कहता है:

    और कोई नहीं जानता है कि उनकी आँख की ताज़गी के लिए क्या छिपा हुआ है, जो कुछ अच्छे कार्य उन्होंने किये है यह उसका पुरस्कार है. (सुरा: अस-सज्दाह, 32:17)

    दूसरी बात यह है कि स्वर्ग का ईनाम महिलाओं और पुरुषों के लिए एक जैसा हैं. वहाँ दो लिंग के बीच एक छोटा सा भी अंतर नहीं है. यह सुरा: अल-अह्जाब से स्पष्ट है:

    मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम स्त्रियाँ, ईमानवाले पुरुष और ईमानवाली स्त्रियाँ, निष्ठापूर्वक आज्ञापालन करने वाले पुरुष और आज्ञापालन करने वाली स्त्रियाँ, सत्यवादी पुरुष और सत्यवादी स्त्रियाँ, धैर्यवान पुरुष और धैर्य रखने वाली स्त्रियाँ, विनर्मता दिखाने वाले पुरुष और विनर्मता दिखाने वाली स्त्रियाँ, सदका (दान) देने वाले पुरुष और सदका (दान) देने वाली स्त्रियाँ, रोज़ा रखने वाले पुरुष और रोज़ा रखने वाली स्त्रियाँ, अपने गुप्तांगों की रक्षा करने वाले पुरुष और रक्षा करने वाली स्त्रियाँ और अल्लाह को अधिक याद करने वाले पुरुष और याद करने वाली स्त्रियाँ - इनके लिए अल्लाह ने क्षमा और बड़ा प्रतिदान तैयार कर रखा है. [सुर: अल-अहज़ाब, 33:35]

    इसमें एक बात तो यह है कि, वहां जो मिलेगा वह ईश्वर का अहसान होगा, हमारा हक नहीं. और वहां सब उसके अहसान मंद होंगे, जैसे कि इसी धरती पर मनुष्यों को छोड़कर बाकी दूसरी जीव होते हैं. दूसरी बात वहां इस धरती की तरह किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं होगी, जैसे कि यहाँ जीवित रहने के लिए भोजन, जल एवं वायु इत्यादि की आवश्यकता होती है.

    ईश्वर परलोक के बारे में कहता है कि:

    [41:31-32] और वहां तुम्हारे लिए वह सब कुछ होगा, जिसकी इच्छा तुम्हारे मन को होगी. और वहां तुम्हारे लिए वह सब कुछ होगा, जिसकी तुम मांग करोगे.

    रही बात "हूर" की तो उनकी अहमियत का एक बात से शायद कुछ अंदाजा हो जाए कि दुनिया की पत्नी, (अगर अच्छे कार्यों के कारण स्वर्ग में जाती है तो) स्वर्ग की सबसे खुबसूरत हूर से भी लाखों गुणा ज्यादा खुबसूरत होगी.


    - शाहनवाज़ सिद्दीकी

    25 comments:

    MLA - Mohd Liaqat Ali said...

    माशाल्लाह बढ़िया लेख एवं हूरों के बारें में बड़ी अच्छी जानकारी है.

    MLA - Mohd Liaqat Ali said...

    "न्याय के दिन से डरो; मैं स्वयं उसके खिलाफ शिकायतकर्ता रहूँगा जो एक मुस्लिम राज्य के गैर-मुस्लिम नागरिक के साथ गलत करेगा या उसपर उसकी जिम्मेदारी उठाने की ताकत से अधिक जिम्मेदारी डालेगा अथवा उसकी किसी भी चीज़ से उसे वंचित करेगा." (Al-Mawardi)

    Rashmig G said...

    Bahut achha likha he Shah ji. bahut khoob!!!

    zeashan zaidi said...

    Nice Post

    सलीम ख़ान said...

    शब्द हूर, अहवार (एक आदमी के लिए) और हौरा (एक औरत के लिए) का बहुवचन है. इसका मतलब ऐसे इंसान से हैं जिसकी आँखों को "हवार" शब्द से संज्ञा दी गयी है. जिसका मतलब है ऐसी आंखे जिसकी सफेदी अत्यधिक सफ़ेद और काला रंग अत्यधिक काला हो...

    सलीम ख़ान said...

    behtareen jankari

    Shah Nawaz said...

    MLA, रश्मि जी, जीशान भाई एवं सलीम भाई, आप सभी का मेरी हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.

    Mohammed Umar Kairanvi said...

    भाई आपका साथ मिल गया अब उम्‍मीद है बहुत कुछ पा लेंगे, इस विषय पर जानकारी की जरूरत महसूस की जा रही थी, अल्‍लाह ने यह काम आपके हाथों होना लिखा था, सो आपने ही किया, शुक्रिया

    Rashmig G said...

    शाह जी मुझे तो लगता था कि इस्लाम धर्म के अनुसार तो स्वर्ग में सिर्फ पुरुषों को ही हूरें मिलेंगी. मगर आपकी पोस्ट से लगता है, कि हूरों का मतलब जो आम लोग लगाते हैं, ऐसा नहीं है.

    Rashmig G said...

    इस ब्लॉग साईट पर आकर इस्लाम धर्म के बारे में बहुत कुछ जानकारियां मिली. धन्यवाद!

    Rashmig G said...

    शाह जी, मेरा प्रश्न है कि क्या इस्लाम के अनुसार स्वर्ग में औरतों को भी बराबर हक मिलेगा?

    Aslam Qasmi said...

    भाई शाहनवाज अनवर जी ने आपकी बहुत तारीफ की थी पढने चला आया, अच्‍छा लिखते हो, अन्‍जुमन वाले दें या न दें सवाब की नीयत से भी मैंने वोट दे दिया

    अवधिया चाचा said...

    शाहनवाज बेटा हमें भी बताना स्‍वर्ग में जाने के लिये अवध जाना जरूरी है कि नहीं

    अवधिया चाचा
    जो कभी अवध न गया

    Shah Nawaz said...

    @ Rashmig G
    शाह जी, मेरा प्रश्न है कि क्या इस्लाम के अनुसार स्वर्ग में औरतों को भी बराबर हक मिलेगा?


    रश्मि जी,

    स्वर्ग का आशीर्वाद महिलाओं और पुरुषों के लिए एक जैसा हैं. वहाँ दो लिंग के बीच एक छोटा सा भी अंतर नहीं है. यह सुरा: अल-अह्जाब से स्पष्ट है:

    मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम स्त्रियाँ, ईमानवाले पुरुष और ईमानवाली स्त्रियाँ, निष्ठापूर्वक आज्ञापालन करने वाले पुरुष और आज्ञापालन करने वाली स्त्रियाँ, सत्यवादी पुरुष और सत्यवादी स्त्रियाँ, धैर्यवान पुरुष और धरी रखने वाली स्त्रियाँ, विनर्मता दिखाने वाले पुरुष और विनर्मता दिखाने वाली स्त्रियाँ, सदका (दान) देने वाले पुरुष और सदका देने वाली स्त्रियाँ, रोज़ा रखने वाले पुरुष और रोज़ा रखने वाली स्त्रियाँ, अपने गुप्तांगों की रक्षा करने वाले पुरुष और रक्षा करने वाली स्त्रियाँ और अल्लाह को अधिक याद करने वाले पुरुष और यद् करने वाली स्त्रियाँ - इनके लिए अल्लाह ने क्षमा और बड़ा प्रतिदान तैयार कर रखा है. [सुर: अल-अहज़ाब, 33:35]



    मैंने आपकी एवं अन्य साथियों की सुविधा के लिए उपरोक्त लेख में "ईश्वर अच्छे कार्यो का स्वर्ग में क्या बदला देगा?" और जोड़ दिया है. उम्मीद है आपको पसंद आएगा.

    Shah Nawaz said...

    अनवर भाई, मेरे ख्याल से तो बात यह है, कि आपका साथ मिल गया है, इंशाल्लाह मैं बहुत कुछ पा लूँगा. अमीन, या रब्बुल आलमीन!

    Shah Nawaz said...

    @ असलम कासमी जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
    @ अवधिया चाचा, अवध जाना जरुरी हो अथवा ना हो परन्तु, स्वर्ग जाने के लिए ईश्वर को पाना अवश्य ही आवश्यक है. और उसके पाने का मतलब उसके सत्य मार्ग का ज्ञान होना है.

    अवधिया चाचा said...

    बेटा 'अनवर भाई, का आपने उनका साथ मिलने का शुक्रिया कहा है, उनका कमेंटस नम्‍बर कौनसा है

    लगता है तुम भी कभी अवध न गये

    Rashmig G said...

    Shah Ji,

    Nimnlikhit dono jaankari to wakai bahut hi achhi hai, maine to suna tha, ki Islam mei Mahilao ko Purusho se Aadha hi haq hai.

    स्वर्ग का आशीर्वाद महिलाओं और पुरुषों के लिए एक जैसा हैं. वहाँ दो लिंग के बीच एक छोटा सा भी अंतर नहीं है. यह सुरा: अल-अह्जाब से स्पष्ट है.

    रही बात "हूर" की तो उनकी अहमियत का एक बात से शायद कुछ अंदाजा हो जाए कि दुनिया की पत्नी, (अगर अच्छे कार्यों के कारण स्वर्ग में जाती है तो) स्वर्ग की सबसे खुबसूरत हूर से भी लाखों गुणा ज्यादा खुबसूरत होगी.

    Shah Nawaz said...

    @ अवधिया चाचा, यहाँ आकर तो हमारा दोनों से दोस्ती का ऐसा नाता जुड़ गया है कि, इस दोस्ती की खुमारी में हम नाम तो लिख रहे थे उमर भाई का और कमबख्त कम्यूटर महाशय ने टाइप कर दिया अनवर भाई.

    वैसे भी हमारे लिए तो उमर भाई और अनवर भाई में कोई फ़र्क है ही नहीं.

    Mohammed Umar Kairanvi said...

    Rashmig G वैसे तो लगता है आपको जवाब मिल गया लेकिन और अधिक इस विषय पर जानना चाहें तो पढियेगा

    पुस्‍तक ''इस्लाम में परदा और नारी की हैसियत''
    सामूहिक जीवन में औरत और मर्द का संबंध किस तरह होना चाहिए, यह इंसानी सभ्यता की सब से अधिक पेचीदा और सब से अहम समस्या रही है, जिसके समाधान में बहुत पुराने ज़माने से आज तक दुनिया के सोचने-समझने वाले और विद्वान लोग परेशान हैं, जबकि इसके सही और कामयाब हल पर इंसान की भलाई और तरक्क़ी टिकी हुई है।
    इतिहास का पन्ना पलटने से पता चलता है कि प्राचीन काल की सभ्याताओं से लेकर आज के आधुनिक पिश्चमी सभ्यता तक किसी ने भी नारी के साथ सम्मान और और न्याय का बर्ताव नहीं किया है! वह सदैव दो अतियों के पाटन के बीच पिसती रही है। इस घोर अंधेरे में उसको रौशनी एक मात्र इस्लाम ने प्रदान किया है, जो सर्व संसार के रचयिता का एक प्राकृतिक धर्म है, जिस ने आकर नारी का सिर ऊँचा किया, उसे जीवन के सभी अधिकार प्रदान किये, समाज में उसका एक स्थान निर्धारित किया और उसके सतीत्व की सुरक्षा की..
    इस पुस्तक में इतिहास से मिसालें दे कर यह स्पष्ट किया गिया है कि दुनिया वालों ने नारी के साथ क्या व्यवहार किया और उसके कितने भयंकर प्रमाण सामने आये, इसके विपरीत इस्लाम धर्म ने नारी को क्या सम्मान दिया, उसकी नेचर के अनुकूल उसके लिये जीवन में क्या कार्य-क्षेत्र निर्धारित किये, उसके के रहन-सहन के क्या आचार नियमित किये तथा सामाजिक जीवन में मर्द और औरत के बीच संबंध का किस प्रकार एक संतुलित व्यवस्था प्रस्तुत किया जिसके समान कोई व्यवस्था नहीं। विशेष कर नारी के परदा (हिजाब) के मुद्दे को विस्तार रूप से उठाया गया है और इसके पीछे इस्लाम का उद्देश्य क्या है? उसका खुलासा किया गया है, तथा जो लोग नारी के परदा का कड़ा विरोध और उसका उपहास करते हैं, इसके पीछा उनका उद्देश्य क्या है और यह किस प्रकार उनके रास्ते का काँटा है, इस से भी अवगत कराया गया है। कुल मिलाकर वर्तमान समय के हर मुसलमान बल्कि हर बुद्धिमान को इस पुस्तक का अध्ययन करना चाहिए
    डायरेक्‍ट लिंक पुस्तक: ''इस्लाम में परदा और नारी की हैसियत''

    सलीम ख़ान said...

    Shahnawaz ki lekhnee jo prem ras barsa rahi hai wah ek na ek din koi na koi gul zaroor khilayega!!!

    sahespuriya said...

    wow,
    good post

    sahespuriya said...

    SHAHNAWAZ BHAI,KAHAN THE AB TAK ?
    MASHALLAH,

    tahoor rocks said...

    Assalamu alaikum bhai...

    Bhai mashallah bahut aacha likha hai apne ""HOOR"" shabd per.

    magar apke blog me maaf kijiega mujh nacheez ko ek cheez ki kami dikhi hai... meri haisiyat to nahi yahan likhne ki magar fir bhi himmat kar raha hun...

    bhai zyadatar log ye samajhte hain ki ""HOOR"" se jannat me sharirik sambandh sthapit kiye jaenge...

    is mudde per bahut vichaar ke baad ek baad zaahir hoti hai...
    JANNAT har tarah ke galat kaamo se mukt hogi...to jaisa ki hum jaante hai sharirik sambandh kewal manushyon ki kamzori(anandit hone ke liye) aur zaroorat(apne vansh ko badhane ke liye) matr hai...
    to jannat me jakar hum is kamzori se upar uth jaenge aur hame iski aawashyakta mesoos nahi hogi.
    kyunki hame sharirik sambandh ki zaroorat(vansh aage badhane ki) rahegi nahi.

    akhir HOOR hame kewal ek saathi ki tarah diye jaenge...
    hamara unke saath vyavahaar aisa hoga jaise koi 5 saal ke maasoom ladka or ladki khelte hai jinke man me kuch galat nahi a sakta
    theek isi prakaar hum bhi waha jakar maasoom ho jaenge or hamare dil se naapaak iraade nikaal diye jaenge....
    to hum kewal saathi ki tarah rahenge usse zyada kuch nahi.

    mere likhe hue is comment per dhyaan dijiega dhanyawaad.

    umeed hai aap aur likhkar hamara gyaan badhate rahenge...

    dhanyawaad

    Satish Saxena said...

    बढ़िया जानकारी दी है शाहनवाज़ भाई ....
    शुभकामनायें !