दया और न्याय का स्थान

Posted on
  • Friday, August 2, 2013
  • by
  • Shah Nawaz
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  • मुसलमानों के लिए यह ज़रूरी है कि वह जान और मान लें कि इस्लाम दया और न्याय का धर्म है. इस्लाम के लिए इस्लाम के अलावा अगर कोई और शब्द इसकी पूरी व्याख्या कर सकता है तो वह "न्याय" है.

    किसी पर झूठा इलज़ाम लगाना या झूठा इलज़ाम लगाने वालों का साथ देना, जब तक किसी पर जुर्म साबित ना हो जाए, (मतलब जुर्म की सच्ची गवाही ना मिल जाए) उसे मुजरिम ठहराना अथवा जुर्म साबित किये बिना ही सज़ा देना, सजा देने की मांग करना ...या सजा देने की पैरवी करना अन्याय और अत्याचार है।

    ... निसंदेह अत्याचारी कभी सफल नहीं हो सकते [कुरआन 6:21]

    ... निश्चय ही वह अत्याचारियों को पसंद नहीं करता [42:40]

    ... जो लोगो पर ज़ुल्म करते हैं और नाहक ज्यादतियां करते हैं। ऐसे लोगों के लिए दुखद यातना है। [42:42]

    किन्तु जिसने धैर्य से काम लिया और क्षमा कर दिया वह उन कामों में से हैं जो (सफलता के लिए) आवश्यक ठहरा दिए गए हैं। [42:43]

    और मुझे तुम्हारे साथ न्याय का हुक्म है.... [कुरआन 42:15]

    और यह बस्तियां वह हैं जिन्होंने अत्याचार किया और हमने उन्हें विनष्ट कर दिया.... [18:59]

    2 comments:

    कविता रावत said...

    बहुत सुन्दर सुविचार ..

    Oliver Jones said...


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