इंसाफ के दिन का इंतजार क्यों?

कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि ईश्वर 'इंसाफ के दिन' अर्थात 'क़यामत' का इंतजार क्यों करता है, आदमी इधर हलाक हुआ उधर उसका हिसाब करे। अल्लाह ने इन्साफ का दिन तय किया, जहाँ वह सभी मनुष्यों को एक साथ इकठ्ठा करेगा ताकि इन्साफ सबके सामने हो। यह इसलिए भी हो सकता है, क्योंकि बहुत से पुन्य और पाप ऐसे होते हैं जिनका सम्बन्ध दुसरे व्यक्ति या व्यक्तियों से होता है। इसलिए "इन्साफ के दिन" उन सभी सम्बंधित लोगो का इकठ्ठा होना ज़रूरी है। जब इन्साफ होगा तब ईश्वर गवाह भी पेश करेगा, कई बार तो हमारे शरीर के अंग ही अच्छे-बुरे कर्मो के गवाह होंगे।

दूसरी बात यह है कि मनुष्य कुछ ऐसे कर्म भी करते हैं जिसका पाप या पुन्य बढ़ने का सिलसिला इस दुनिया के समाप्त होने तक बढ़ता रहेगा। जिस व्यक्ति ने कोई "गुनाह" पहली बार किया, उसने आने वाले समय के लिए उस गुनाह का रास्ता औरों को भी बता दिया। उस "गुनाह" को अमुक व्यक्ति कि बाद जितने भी लोग करते जाएँगे, उन सभी के पापो में उस पहले व्यक्ति की भी ज़िम्मेदारी बनती है, इसलिए उन लोगों के गुनाहों की सजा उस पहले व्यक्ति को भी होगी। जैसे कि जिस इंसान ने पहली बार किसी दुसरे इंसान की हत्या की होगी, तो उसके खाते में जितने भी इंसानों कि हत्या होगी उन सबका पाप लिखा जायेगा। क्योंकि उसने क़यामत तक के इंसानों को कुकर्म का एक नया रास्ता बताया।

इसे इस तरह समझा जा सकता है, मान लीजिये किसी व्यक्ति ने दुसरे व्यक्ति की हत्या के इरादे से किसी सड़क पर गड्ढा खोदा, उसमें वह व्यक्ति गिर कर मर गया। लेकिन गड्ढा कई सालों तक वहां बरकरार रहा और उसमें कई और व्यक्ति भी गिर कर मरे अथवा घायल हुए, इस स्तिथि में इस पाप के लिए केवल पहला ही नहीं बल्कि जितने व्यक्तियों की मृत्यु होगी अथवा घायल होंगे उन सभी का पाप गड्ढा खोदने वाले व्यक्ति के सर पर होगा। ऐसे ही अगर किसी ने कोई बुरा रास्ता किसी दुसरे व्यक्ति को दिखाया तो जब तक उस रास्ते पर चला जाता रहेगा। अर्थात दूसरा व्यक्ति तीसरे को, फिर दूसरा और तीसरा क्रमशः चौथे एवं पांचवे को तथा दूसरा, तीसरा, चौथा एवं पांचवा व्यक्ति मिलकर आगे जितने भी व्यक्तियों को पाप का रास्ता दिखाएंगे उसका पाप पहले व्यक्ति को भी मिलेगा, पहला व्यक्ति सभी के गलत राह पर चलने का जिम्मेदार होगा। क्योंकि उसी ने वह रास्ता दिखाया है, अगर वह बुराई की राह दुसरे को दिखता ही नहीं तो दुसरे, तीसरे, चौथे और इससे आगे के व्यक्तियों तक वह बुराई पहुँचती ही नहीं या कम से कम उसके ज़रिये तो नहीं पहुँचती। इस तरह इस ज़ंजीर में से जो भी व्यक्ति जानबूझ कर और लोगो को पाप के रास्ते पर डालेगा वह भी उससे आगे के सभी व्यक्तियों के पापो का पूरा-पूरा भागीदार होगा।

ठीक इसी तरह अगर कोई भलाई का काम करता है जैसे कि पानी पीने के लिए प्याऊ बनाया तो जब तक वह प्याऊ है, तब तक उसका पुन्य अमुक व्यक्ति को मिलता रहेगा, चाहे वह कब का मृत्यु को प्राप्त हो गया हो। या फिर कोई किसी एक व्यक्ति को भलाई की राह पर ले कर आया, तो जो व्यक्ति भलाई कि राह पर आया वह आगे जितने भी व्यक्तियों को भलाई कि राह पर लाया और अच्छे कार्य किये, उन सभी के अच्छे कार्यो का पुन्य पहले व्यक्ति को और साथ ही साथ सम्बंधित व्यक्तियों को भी पूरा पूरा मिलता रहेगा, यहाँ तक कि इस पृथ्वी के समाप्ति का दिन आ जाये।

इससे पता चलता है कि मृत्यु के बाद फ़ौरन हिसाब-किताब होना और उसका फल मिलना व्यवहारिक नहीं है, कर्मों का हिसाब करते समय अर्थात 'इंसाफ के दिन' धरती के आखिरी कुकर्म अथवा सुकर्म करने वाले की पेशी होना आवश्यक है।


अल्लाह इन्साफ के दिन पर कहता है:

"और हम वजनी, अच्छे न्यायपूर्ण कार्यो को इन्साफ के दिन (क़यामत) के लिए रख रहे हैं फिर किसी व्यक्ति पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा, यद्दपि वह (कर्म) राइ के दाने ही के बराबर हो, हम उसे ला उपस्थित करेंगे।और हिसाब करने के लिए हम काफी हैं। (21/47)"
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