सभी धर्मों के धर्मग्रंथों में बहुत सी ऐसी बातें लिखी गई या बताई गई हैं जो उस युग के मनुष्य की अवैज्ञानिक धारणाओं, सीमित सोच, सीमित ज्ञान (या अज्ञान), तत्कालीन देश-काल की परिस्थितियों व लेखक के अपने अनुभवों या मजबूरियों पर आधारित हैं, आज के युग में इन मध्य युगीन या उससे भी प्राचीन बातों की कोई प्रासंगिकता या उपयोग नहीं रहा, यह सब बातें आज आदमी की कौम को जाहिलियत व वैमनस्य की ओर धकेल रही हैं व इन सब बातों को आप बेबुनियाद-बेकार-बकवास की श्रेणी में रख सकते हैं और अब समय आ गया है कि धर्माचार्यों को अपने अपने ग्रंथों की विस्तृत समीक्षा कर इन बातों को Disown कर देना चाहिये। "
प्रवीण जी मैं आपकी बातों से बिलकुल सहमत नहीं हूँ. जो ज्ञान हर युग में प्रासंगिक हों वही तो धर्म है वर्ना वह साधारण ज्ञान कहलाता है. धर्म एक ईश्वरीय ज्ञान होता है और ईश्वर का ज्ञान सदा के लिए होता है. यह तो मनुष्य का ज्ञान है, जो एक अरसे बाद गलत साबित हो जाता है. ईश्वर का ज्ञान तो वही है जो कभी गलत साबित हो ही ना पाए. यह तो हो सकता है कि कोई धार्मिक बात हमारे समझ में ना आए, परन्तु यह नहीं हो सकता कि ईश्वरीय बात गलत हो जाए. इसलिए अगर कोई बात समझ में ना आए तो यह सोचना कि वह बात ही गलत है और यह सोच कर ज्ञानी पुरुषों से प्रश्न ही ना करना बेवकूफी है. इसलिए हर धर्म में कहा गया है कि ज्ञान का प्राप्त करना मनुष्य का फ़र्ज़ है.
धर्मग्रंथो में लिखी गई बाते अगर आज के युग के लिय अप्रासंगिक होती, तो आज भी वैज्ञानिक उनको खागालने में नहीं लगे होते? आज पूरी दुनिया योग की तरफ भाग रही है, अध्यात्म की और लौट रही है. पुरे विश्व में वह लोग जो किसी खुदा को नहीं मानते थे, आज आस्तिक बन रहे हैं. तो इसके पीछे हमारे धर्माचार्यों की मेहनत और उनकी मेहनत के फलस्वरूप ईश्वर की ओर से दिया हुआ ज्ञान ही है. बस ज़रूरत है उस ज्ञान को आत्मसात करने की.
अगर आप विज्ञान को देखोगे तो पाओगे कि कितनी ही बातें धार्मिक ग्रंथो से ली गई हैं. जो बातें अबसे हजारों वर्ष पहले महापुरुष लोगो को बता कर गए, आज जाकर विज्ञान उनको सिद्ध कर रहा है. आखिर कहाँ से उन महापुरुषों के पास इतना ज्ञान आया? आज अगर इन्टरनेट पर सर्च करोगे तो हजारों ऐसी रिसर्च मिल जाएंगी, क्या वह सब की सब गलत हैं?
आप कह रहे हैं कि धार्मिक बातें इन्सान को जाहिलियत और वैमनस्य की ओर धकेल रही हैं, और मेरा दावा है कि सिर्फ और सिर्फ धार्मिक बातें ही इंसान को जाहिलियत और वैमनस्य से रोक सकती हैं. यह जो जाहिलियत और वैमनस्य फ़ैलाने वाले लोग हैं, असल में यह अपने धर्म का पालन करने वाले लोग है ही नहीं, बल्कि धर्म का इस्तेमाल करने वाले लोग हैं. इन्हें आप धर्म के व्यापारी कह सकते हैं, जो कि अपने फायदे के लिए धार्मिक ग्रंथो को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं. मेरा मानना है कि इन लोगो को हलके में नहीं लेना चाहिए, यह पूरी एक मुहीम है और इसके पीछे कोई बहुत बड़ा संगठन काम कर रहा है.
जिसका मकसद अपना उल्लू सीधा करने के लिए लोगो को बेवक़ूफ़ बनाना हो सकता है. क्योंकि वह लोग जानते हैं, कि जिन्हें अपने धर्म के बारे में जानकारी नहीं है, उन्हें ही बेवक़ूफ़ बनाया जा सकता है. और इस समस्या से निजात पाने का तरीका भी यही है, कि पुराने ढर्रे पर ना चलकर लोगों को जागरूक बनाया जाए. धर्म की सही शिक्षाओं को सामने लाया जाए, ताकि अन्धकार दूर हो.
या फिर यह भी हो सकता है कि कैसे लोगो को उनके धर्म से दूर ले जाया जाए. ज़रा सोचिये क्यों नहीं पश्चिम के धर्मों के बारे में गलत बातें सामने आती? क्यों सिर्फ हमें ही निशाना बनाया जाता है?
रही बात समीक्षा की तो लोगो के द्वारा की जा रही अनावश्यक समीक्षा की वजह से ही तो सारा फसाद फ़ैल रहा है. मेरे विचार से तो समीक्षा उसकी की जानी चाहिए है जिसकी कोई बात गलत साबित हो.
24 comments:
अगर कोई बात समझ में ना आए तो यह सोचना कि वह बात ही गलत है और यह सोच कर ज्ञानी पुरुषों से प्रश्न ही ना करना बेवकूफी है....agreed!
बहुत अच्छी बात आपने लिखी है नास्तिकों के लिए विचारणीय है |
dharam mnushay ko sahi raste pe lata hain
धर्म के बिना तो यह पृथ्वी मात्र एक अँधेरा है, धर्म ही तो जीवन लक्ष है. जिसने प्रभु से प्रेम किया हो उसे ही उस प्रेमरस के स्वाद का अनुभव होता है. अज्ञानी लोग हमेशा दूसरों को अज्ञानी समझते हैं, आप परेशान मत होइए शाह जी, बस इसी तरह लगे रहिये. हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है.
आज पूरी दुनिया योग की तरफ भाग रही है, अध्यात्म की और लौट रही है. पुरे विश्व में वह लोग जो किसी खुदा को नहीं मानते थे, आज आस्तिक बन रहे हैं. तो इसके पीछे हमारे धर्माचार्यों की मेहनत और उनकी मेहनत के फलस्वरूप ईश्वर की ओर से दिया हुआ ज्ञान ही है. बस ज़रूरत है उस ज्ञान को आत्मसात करने की.
मुझे लगता है कि धर्म अति साधारण,अति सरल और अति सवेंदनशील है!चूंकि हम अल्पबुद्धियो के लिए हर एक चीज की अति खतरनाक होती है सो धर्म की ये अति भी हम समझ नहीं पा रहे है!
कुंवर जी,
Nice Post Shahnawaz bhai.
Bahut Khoob likha hai:
"यह जो जाहिलियत और वैमनस्य फ़ैलाने वाले लोग हैं, असल में यह अपने धर्म का पालन करने वाले लोग है ही नहीं, बल्कि धर्म का इस्तेमाल करने वाले लोग हैं. इन्हें आप धर्म के व्यापारी कह सकते हैं, जो कि अपने फायदे के लिए धार्मिक ग्रंथो को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं. मेरा मानना है कि इन लोगो को हलके में नहीं लेना चाहिए, यह पूरी एक मुहीम है और इसके पीछे कोई बहुत बड़ा संगठन काम कर रहा है."
Shahnawaz bhai, badi khushi hui ki aapne Yog aur Adhyatm ka samarthan kiya.
Dhanywad!
आज पूरी दुनिया योग की तरफ भाग रही है, अध्यात्म की और लौट रही है.
राज भाई, आप परेशान मत होइए, ना तो किसी के छुपाने से सत्य छुपता है और ना दबाने से सच्चाई दबती है. मेरे विचार से कुछ लोग धर्म-धर्म चिल्लाकर अधर्म फैलाना चाह रहे हैं. चाहे किसी भी धर्म से सम्बंधित लेख हो, कुछ लोग वहां जाकर जानबूझकर उलझाने वाली एवं दिवार्थी बातें करते हैं. ताकि लोग को भ्रमित करके अच्छी बातों से विमुख कराकर उनका रुख उनके लेखों की तरफ मोड़ सकें.
मेरी एक बात समझ में नहीं आई कि अवधिया साहब को आखिर मेरे लेख में क्या गलत लगा? लोग यहाँ सरे आम धमकियाँ दे रहे हैं, और अगर कोई उनके खिलाफ आवाज़ उठाए तो अवधिया साहब और उनके सहयागियों को बुरा लग रहा है? आखिर क्यों?
http://dhankedeshme.blogspot.com/2010/04/blog-post_23.html
मानता हूँ कि समाज में बहुत से मुद्दे हैं जिन पर चर्चा नहीं हो रही है, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि अगर कोई लेख अथवा मुद्दा हमें पसंद ही ना आए तो हम उसे एग्रीगेटर से प्रार्थना करके निरस्त ही करवा दें. क्या यह लोकतंत्र के लिए अच्छा है? होना तो यह चाहिए कि हम अपने विचार दुनिया के सामने प्रस्तुत करें और फिर लोगों पर छोड़ दें कि उनको क्या पंसद है और क्या नहीं. लेकिन कुछ लोग ज़बरदस्ती यह निर्णय सब पर थोपना चाह रहें हैं कि "लोगो को क्या पढ़ना चाहिए और क्या नहीं?"
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मित्र शाहनवाज,
मेरी टिप्पणी से असहमति जताती यह पोस्ट बनाकर एक स्वस्थ संवाद शुरू करने के लिये आपका आभार ।
अब लीजिये बिन्दुवार जवाब...
जो ज्ञान हर युग में प्रासंगिक हों वही तो धर्म है वर्ना वह साधारण ज्ञान कहलाता है
पाषाण युग से आज तक प्रासंगिक ऐसे ज्ञान हैं पहिया, लीवर(Lever), गरारी व आग की ताकत... किसी एक खास जगह जाकर कुछ खास शब्द समूहों को बार बार दोहरा कर किसी परमपिता के सामने सर झुकाना या उसकी प्रार्थना करना जिसे आज धर्म के नाम से जाना जाता है महज ८-१० हजार साल पुराना है... यह तथाकथित ज्ञान आदमी की कौम के लिये क्या उपयोगिता रखता है?
धर्म एक ईश्वरीय ज्ञान होता है और ईश्वर का ज्ञान सदा के लिए होता है. यह तो मनुष्य का ज्ञान है, जो एक अरसे बाद गलत साबित हो जाता है. ईश्वर का ज्ञान तो वही है जो कभी गलत साबित हो ही ना पाए.
ईश्वर के इस तथाकथित ज्ञान के कुछ उदाहरण दीजिये तब कुछ कहूँगा।
यह तो हो सकता है कि कोई धार्मिक बात हमारे समझ में ना आए, परन्तु यह नहीं हो सकता कि ईश्वरीय बात गलत हो जाए.
बतलाईये तो सही क्या कहा है उसने।
अगर आप विज्ञान को देखोगे तो पाओगे कि कितनी ही बातें धार्मिक ग्रंथो से ली गई हैं. जो बातें अबसे हजारों वर्ष पहले महापुरुष लोगो को बता कर गए, आज जाकर विज्ञान उनको सिद्ध कर रहा है.
यहाँ पर फिर कुछ उदाहरणों की दरकार है।
आप कह रहे हैं कि धार्मिक बातें इन्सान को जाहिलियत और वैमनस्य की ओर धकेल रही हैं, और मेरा दावा है कि सिर्फ और सिर्फ धार्मिक बातें ही इंसान को जाहिलियत और वैमनस्य से रोक सकती हैं.
दुनिया में ज्यादातर झगड़े, बड़ी लड़ाइयाँ धर्म के कारण हुई हैं यह जगजाहिर बात है, ब्लॉगवुड में चल रहा ताजा विवाद भी उदाहरण है इसका ।
ज्यादा विस्तार से लिखना यहाँ संभव नहीं पर धर्म व ईश्वर को समझने का प्रयास करती मेरी यह लेखमाला जरूर देखियेगा, चिंतन के लिये एक नई दिशा व विचार के लिये कुछ हटकर खुराक अवश्य मिलेगी ।
आभार!
भाई शाहनवाज, आपने अपनी बात बहुत सलीके से रखी है, रही बात प्रवीण शाह जी की ऐसे तो आपने आरकुट में सैंकडों को भुगता है, मामूली बात है, इस पहलवान का ख्याल रखना यह भाग लेता है, इसलिये सम्मान देने के लिये इनके ब्लाग में जाना और वहाँ कहना 'सुनिये मेरी भी'
लेकिन आप जवाब दोगे कल इस लिये तब तक पाठकों मैं कहता हूँ कि आओ
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विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि
(इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? हैं या यह big Game against Islam है?
antimawtar.blogspot.com (Rank-2 Blog) डायरेक्ट लिंक
अल्लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को
अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता
अल्लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
अल्लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्तक केवल चार
अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में
अल्लाह का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी
छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्लामिक पुस्तकें
islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
डायरेक्ट लिंक
@ प्रवीण शाह
पाषाण युग से आज तक प्रासंगिक ऐसे ज्ञान हैं पहिया, लीवर(Lever), गरारी व आग की ताकत... किसी एक खास जगह जाकर कुछ खास शब्द समूहों को बार बार दोहरा कर किसी परमपिता के सामने सर झुकाना या उसकी प्रार्थना करना जिसे आज धर्म के नाम से जाना जाता है महज ८-१० हजार साल पुराना है... यह तथाकथित ज्ञान आदमी की कौम के लिये क्या उपयोगिता रखता है?
प्रवीण जी,
देखिये मैं तो आपको सिर्फ इस्लाम की बातें ही बता सकता हूँ, अन्य धर्म के ज्ञान के लिए तो अमित शर्मा और अनवर जमाल जैसे महानुभवो को आना पड़ेगा.
पहिया, लीवर, गरारी, जैसी बहुत सी बातें अल्लाह ने कुरान के ज़रिये इंसानों को बताई, इन की सूचि बहुत लम्बी है, इसके लिए पूरी एक पोस्ट बनानी पड़ेगी. तब तक आप "हमारी अंजुमन" पर जाकर विज्ञानं के गूढ़ रहस्यों से सम्बंधित कुछ जानकारिया हासिल कर सकते हैं.
इसी ज्ञान ने इंसान को इंसान बनाए रखा हुआ है और सबसे बड़ी बात तो यह है, कि इसी ज्ञान के ज़रिये हम हमारे पैदा करने वाले का आभार प्रकट करते हैं. ज़रा सोचिये, कोई आपको तनख्वाह देता है, और बदले में आप उसका काम ही ना करें तो क्या वह आपको तनख्वाह देगा? और क्या तनख्वाह लेना आपके लिए सही होगा?
ईश्वर ने दुनिया की हर वास्तु किसी न किसी मकसद से पैदा की है, जैसे कि खाद्य पदार्थ, फल इत्यादि जीवों के खाने के लिए, वहीँ छोटे से छोटा जीव भी किसी न किसी कार्य में आता है. तो क्या आप सोचते हैं कि उसने मनुष्य को बिना किसी मकसद के ही पैदा कर दिया?
ईश्वर के इस तथाकथित ज्ञान के कुछ उदाहरण दीजिये तब कुछ कहूँगा।
ईश्वर के इस ज्ञान का एक उदहारण कुरआन-ए-करीम है. आज तक इसके जैसी अपने आप में सम्पूर्ण किताब कोई भी मनुष्य नहीं बना पाया है. चाहे वह विज्ञान के हिसाब से हो या गणित अथवा तर्क के हिसाब से. कुरआन अपने आप में जीता-जागता करिश्मा है. इसको ईश्वर ने ऐसे विज्ञान के साथ बनाया है कि इसमें अगर कोई एक मात्रा भी बदलने की कोशिश करता है तो वह पकड़ा जाता है.
बतलाईये तो सही क्या कहा है उसने।
कुरआन अथवा वेद पढ़िए आपको स्वयं पता चल जाएगा कि उसने क्या कहा.
"दुनिया में ज्यादातर झगड़े, बड़ी लड़ाइयाँ धर्म के कारण हुई हैं यह जगजाहिर बात है, ब्लॉगवुड में चल रहा ताजा विवाद भी उदाहरण है इसका ।"
दुनिया का एक भी झगडा धर्म के कारण नहीं हुआ, हाँ यह अवश्य कहा जा सकता है कि धर्म के दुरूपयोग के कारण हुआ. और शैतान प्रवित्ति के लोग तो अगर धर्म नहीं होता तब भी अवश्य झगडा करते. यह तो आप भी जानते हैं, कि धर्म का सहारा लेकर जो युद्ध हुए उनकी संख्या अन्य कारणों से हुए युद्धों के मुकाबले ना के बराबर है.
गुड पोस्ट
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मित्र शाहनवाज,
आपको मेरे कहे को समझने के लिये Organic Evolution व Origin of life on Earth के बारे में काफी कुछ पढ़ना होगा... तभी आप समझोगे कि ईश्वर की यह अवधारणा कितने बाद में आई मानव समाज के बीच...
सही क्रम है...
बड़े कपियों का एक समूह...
पिछले पैरों पर खड़ा होकर चलना सीखना...
दोनों अगले पैरों का किसी भी अन्य कार्य के लिये मुक्त होना...
दोनों अगले पैरों(आज के हाथ) में अंगूठे का बाकी ऊंगलियों से ९० डिग्री के कोण पर शिफ्ट होना...
हाथ के जरिये प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध चीजों को औजार रूप में प्रयोग करने की योग्यता का विकास...
सामूहिक रूप से बड़े पशुओं का आखेट...
समूह में रहने व आखेट करने के कारण भाषा का विकास...
कालांतर में लिपियों का विकास...
समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिये कुछ नियमों का बनना...
परिवार, उत्तराधिकार आदि अवधारणाओं का उदय...
चल व अचल संपत्ति की मान्यता...
यह सब होता रहा लाखों साल तक...
इस दौरान नहीं था कोई धर्म या ईश्वर का दखल!
महज पिछले ७-८ हजार सालों में आई हैं यह अवधारणायें... भाषा के विकास के बाद... बिना भाषा के इनको अभिव्यक्त भी नहीं किया जा सकता।
धर्म ग्रंथ भले ही कुछ भी कहते रहें परंतु सूर्य के एक दहकते टुकड़े के रूप में उसके चक्कर लगाती पृथ्वी पर जीवों व पादपों का होना एल लम्बी व सतत प्रक्रिया के तहत हुआ... Evolution आज भी जारी है... भविष्य का मानव (Homo futuris) कैसा होगा इस पर भी आज कयास लगाये जाते हैं... इतने लम्बे मानव इतिहास में धर्म व ईश्वर का यह दौर काफी कम समय से है... कुछ अच्छे कुछ बुरे समयकालों की तरह यह भी गुजर जायेगा ।
आस्था व विश्वास पर मैं कुछ नहीं कहूँगा सिवाय इसके कि ...
"किसी चीज का अस्तित्व वाकई में नहीं है यह कोई कैसे साबित कर सकता है ?"
और हाँ यह जरूर कहूंगा कि पहिया, लीवर व गरारी का ज्ञान इस्लाम के उदय से पुर्व से ही था आदमी के पास...
आभार!
सच कहा 'दुनिया का एक भी झगडा धर्म के कारण नहीं हुआ, हाँ यह अवश्य कहा जा सकता है कि धर्म के दुरूपयोग के कारण हुआ.
भाई आपने दूसरे शाह को अन्जुमन भेजने की बात की यह पहलवान हमारे सर्वधर्म ज्ञानी अनवर जमाल साहब की जिस पोस्ट से भागा हुआ उसका दरवाजा यह है, घुसादो फिर से उसी दरवाजा में इस बहाने फिर निम्न विषय पर तीसरी किस्त भी आजायेगी (इन्शा अल्लाह)
''पवित्र कुरआन में गणितीय चमत्कार'' quran-math-II
http://hamarianjuman.blogspot.com/2010/02/quran-math-ii.html
इसे देखें और दोस्तों दुशमनों को दिखयें
@प्रवीण शाह,
सृष्टि का जो भी विकास हुआ वह एक इंटेलिजेंट डिजाइन के रूप में हुआ. कोई रैंडम इवोल्यूशन नहीं हुआ. और अगर इंटेलिजेंट डिजाइन है तो डिज़ाईनर भी होना ही चाहिए. इस बारे में मेरी एक श्रृंखला यहाँ ( भाग १, भाग २, भाग ३, भाग ४) प्रकाशित हो रही है.
परवीन जी कह रहे हें कि धार्मिक बातें इंसान को जाहिल्य्त की ओर धकेल रही हें उधर शाहनवाज़ कहते हें कि धर्म की कोई बात अपर्संगिक नहीं . बात दोनों की सही हे जो धर्म ईश्वरीय हे उस में कोई एक बात भी अपर्संगिक नहीं होती ओर जो मनुष्य का अपने हाथों से बनाया हुआ हे उस मैं बहुत कुछ अपर्संगिक हे ज़रुरत इस बात की हे कि लोग ईश्वरीय धर्म को जाने
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