क्‍या इस्लाम अनुसार बच्चा गोद लेना सही है?

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  • Monday, April 5, 2010
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  • Shah Nawaz
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  • प्रश्न: क्या इस्लाम के अनुसार बच्चा गोद लेना सही नहीं है? क्या किसी को बेटा अथवा बेटी माना जा सकता है?

    उत्तर: बच्चे को गोद लिया जा सकता है, बल्कि  गरीब बच्चों का पालन-पोषण करना पुन्य का काम है. परन्तु बालिग़ होने पर उनको सामान्यत: घर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती हैं. यही नियम चचेरे-ममेरे भाईओं के लिए भी है. अर्थात उनके घर में प्रवेश से पहले घर की औरतों को अपने शरीर को सामान्य: नियमानुसार ढकना आवश्यक है.

    जहाँ तक जायदाद में हिस्से की बात है, तो कोई भी किसी को भी अपनी जायदाद में हिस्सा दे सकता है, हाँ ऐसा हिस्सा अपने-आप नहीं होता है. अर्थात पिता की मृत्यु के पश्चात् (अगर उसके नाम जायदाद नहीं की गयी है) गोद लिए बच्चा जायदाद में हिस्से की मांग नहीं कर सकता है.

    इस्लाम अनुसार किसी भी महिला के लिए मर्द की स्थिति दो तरह की होती हैं: महरम और ना-महरम. सामान्यत: ना-महरम वह होते हैं जिनके सामने परदे की आवश्यकता होती है (अर्थात मुंह और हाथ को छोड़ कर शरीर के सभी अंगो को ढकना आवश्यक होता है). ना-महरम उस श्रेणी में आते हैं जिनसे विवाह जायज़ होता है.

    जिनसे खून अथवा दूध का रिश्ता होता है वह महरम की श्रेणी में आते हैं, और उनसे वैवाहिक सम्बन्ध नहीं बनाए जा सकते हैं. जैसे कि माता-पिता, सास-ससुर, बेटें-बेटियां, पति के बेटें-बेटियां, भाई-बहन, भतीजे-भतीजियाँ, भांजे-भांजियां इत्यादि.

    Allah says : (Interpretation of Qur'an Surah An-Noor)


    "And say to the faithful women to lower their gazes, and to guard their private parts, and not to display their beauty except what is apparent of it, and to extend their headcoverings (khimars) to cover their bosoms (jaybs), and not to display their beauty except to their husbands, or their fathers, or their husband's fathers, or their sons, or their husband's sons, or their brothers, or their brothers' sons, or their sisters' sons, or their womenfolk, or what their right hands rule (slaves), or the followers from the men who do not feel sexual desire, or the small children to whom the nakedness of women is not apparent, and not to strike their feet (on the ground) so as to make known what they hide of their adornments. And turn in repentance to Allah together, O you the faithful, in order that you are successful".


    अल्लाह कुरआन में फरमाता है (जिसका मतलब है):


    और ईमान वाली स्त्रियों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें बचाकर रखे और अपनी शर्मगाहों की रक्षा करें. और अपने श्रृंगार प्रकट न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है (अर्थात महरम) और अपने सीनों (वक्षस्थलों) पर दुपट्टे डाले रहे और अपना श्रृंगार किसी पर प्रकट न करे सिवाह अपने पति के या अपने पिता के या अपने पति के पिता के या अपने बेटों के अपने पति के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजो के या अपने मेल-जोल की स्त्रियों के या जो उनकी अपनी मिलकियत में हो उनके, या उन अधीनस्थ पुरुषों के जो उस अवस्था को पार कर चुकें हो, जिसमें स्त्री की ज़रूरत होती है,.या उन बच्चो के जो औरतों के परदे की बातों से परिचित ना हो. ..............[सुर: अन-नूर, 24:31] 

    इस्लाम के अनुसार "माना हुआ" जैसे किसी रिश्ते की क़ानूनी मान्यता नहीं है. इस शब्द के जाल में आज भी चोरी-छिपे गुनाह होते हैं, कितने ही प्रेमी-प्रेमिका अपने पाप को समाज से छुपाने के लिए एक दुसरे को राखी बांध कर, दिखावे के बहन-भाई बन जाते हैं और "राखी" जैसी पवित्र भावना को बदनाम करते हैं.

    "मुंह बोले" अथवा "माने हुए" रिश्ते को अगर मान्यता मिलती तो वह घर की अन्य महिलाओं के लिए "महरम" होते परन्तु खून अथवा दूध का सीधा रिश्ता ना होने की स्थिति के कारणवश व्यभिचार को बढ़ावा मिलता.
    अंजुम जी ने बहुत ही ज़बरदस्त बात की तरफ इशारा किया है.

    @ Anjum Sheikh ने कहा…
    "जब हज़रत ज़ैद (रज़ी.) को हुजुर (स.) ने गोद लिया तो अल्लाह ने कुरान के ज़रिये बताया कि गोद लिए बच्चे का दर्जा महरम का नहीं हो सकता है. इसलिए आप (स.) उसको अपना नाम नहीं दे सकते हैं."


    दर-असल प्यारे नबी (स.) ने गुलामों के हक की बात उठाई और लोगो को अपने गुलामों को आज़ाद करने के लिए प्रेरित करने हेतु अपने गुलाम हज़रत ज़ैद (र.) को आज़ाद किया. इसके साथ ही उन्होंने हज़रत ज़ैद (र.) को अपने मुंहबोले बेटे का दर्जा भी दिया तो अल्लाह ने कुरआन की आयत उतार कर उनको ऐसा करने से रोक दिया. ईश्वर ने कहा कि तुम उनको (अर्थात आज़ाद किये हुए गुलामों को) उनके बाप के नाम के साथ पुकारों और अगर तुम्हे उनके बाप का नाम नहीं पता है, तो उनको अपना भाई समझो.

    [सुर: अल-अहज़ाब 33:4] ..... और ना उसने तुम्हारे मुंह बोले बेटों को तुम्हारे वास्तविक बेटे बनाए. ये तो तुम्हारे मुँह की बातें हैं. किन्तु अल्लाह सच्ची बात कहता है और वही मार्ग दिखता है.



    [33:5] उन्हें (अर्थात मुँह बोले बेटों को) उनके बापों का बेटा कहकर पुकारो. अल्लाह के यहाँ यही अधिक न्यायसंगत बात है. और यदि तुम उनके बापों को न जानते हो, तो धर्म में वे तुम्हारे भाई तो हैं ही और तुम्हारे सहचर भी. इस सिलसिले में तुमसे जो गलती हुई हो उसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं, कुन्तु जिसका संकल्प तुम्हारे दिलों ने कर लिया, उसकी बात और है. वास्तव में अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, दयावान है.

    क्योंकि दोनों में खून अथवा दूध का रिश्ता नहीं है, इसलिए मुँह बोले बेटों के घर की औरतों के लिए ना-महरम की स्तिथि होती और वहीँ उसके घर में भी गोद लेने वाले की स्तिथि ना-महरम की ही होती. इसलिए बेटों की जगह धर्म भाई मानना अधिक अच्छा है.

    - शाहनवाज़ सिद्दीकी

    19 comments:

    MLA - Mohd Liaqat Ali said...

    nice post

    अमिताभ श्रीवास्तव said...

    janaab, esi jaankaari gyaanvardhak hoti he, jaanane samajhne me aati he, dhnyavaad aapka.., yah umda kaary he.

    Anjum Sheikh said...

    बिलकुल सही लिखा है आपने. गोद ली हुई औलाद को महरम का दर्जा नहीं दिया जा सकता है.

    Anjum Sheikh said...

    जब हज़रात ज़ैद (रज़ी.) को हुजुर (स.) ने गोद लिया तो अल्लाह ने कुरान के ज़रिये बताया कि गोद लिए बच्चे का दर्जा महरम का नहीं हो सकता है. इसलिए आप (स.) उसको अपना नाम नहीं दे सकते हैं.

    sahespuriya said...

    nice post

    Mohammed Umar Kairanvi said...

    भाई शाबाश, माशाअल्‍लाह भरपूर जानकरी के साथ पोस्‍ट करते हो , 'हमारी अन्‍जुमन' में आपके आने से हमारी ताकत दूगनी होगयी, हम आप पर जितना फखर करें कम है,

    इन विषय पर इन बातों को पेश करने की बेहद जरूरत महसूस की जा रही थी आपने सही समय पर इस ओर ध्‍यान दिया अच्‍छा किया

    Dr. Ayaz ahmad said...

    very good shahnawaz bhai

    Dr. Ayaz ahmad said...

    very good shahnawaz bhai

    DR. ANWER JAMAL said...

    nice post and pls come to see my latest article on falsehood of so called nationalists .http://vedquran.blogspot.com/2010/04/confusions.html

    Shekhar Kumawat said...

    GOOD

    ACHA SYSTEM HE !!!!


    BAHUT KHUB

    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

    zeashan zaidi said...

    Nice Post

    Akhtar Khan Akela said...

    jnaab islaam men bchcha god lene kaa hukm nhin he lekin bhaartiya uchchnyaaylya ne rivaayat ke aadhaar pr hmaare desh men ise qaanoon qraar diya he. akhtar khan akela kota rajasthan

    इस्लामिक वेबदुनिया said...

    शाहनवाज़ साहब ने अच्छि जानकारी दी .हमारी तरफ से शुकरिया और मुबारकबाद

    इस्लामिक वेबदुनिया said...

    सही कहा है आपने
    बच्चे को गोद तो लिया जा सकता है, परन्तु सिर्फ पालन-पोषण इत्यादि के लिए. आप उसको अपना नाम नहीं दे सकते है, और बालिग़ होने पर सामान्यत: घर में प्रवेश की अनुमति भी नहीं दे सकते हैं. यही नियम चचेरे-ममेरे भाईओं के लिए भी है. अर्थात उसके घर में प्रवेश से पहले घर की औरतों को अपने शरीर को सामान्य: नियमानुसार ढकना आवश्यक है.

    सलीम ख़ान said...

    भाई शाह नवाज़ लिखते ग़ज़ब का हो और बहुत मजबूती के साथ... अल्लाह आपको अच्छा रखे

    zeashan zaidi said...

    बच्चे को गोद लेकर पालने में बुराई नहीं. बल्कि इसे तो इस्लाम में बहुत अहमियत दी गई है. ख़ास तौर से यतीम बच्चे को पालने में नबी (स.अ) की हदीस है की यतीम को इस तरह पालो की अपने बच्चों और उसके दरमियान कोई फर्क न हो. अगर दुनिया का हर साहिबे हैसियत आदमी कम से कम एक गरीब या यतीम की परवरिश की ज़िम्मेदारी ले ले तो किसी बच्चे को भूक से मजबूर होकर मिट्टी खाने की ज़रुरत न पड़े.

    शुएब समी said...

    nice post

    शुएब समी said...

    प्रेम से बोलो सच बोलो

    आलोक मोहन said...

    aap ka dhrm bharat ke kanun se uper nhi ho sakta....
    goad liya bachha ko pura adhikar wo apna haq maage...
    ya to kaanun man lo ya desh chod do