काफिर शब्द का मतलब है "इन्कार करने वाला". अर्थात 'काफिर' उसे कहते हैं जो ईश्वर को पहचान कर भी अपने अहम् या दुष्टों की बातों में आकर या किसी और कारणवश उसके होने का या उसके किसी आदेश का इन्कार करे. अर्थात जिस तक ईश्वर का सन्देश पहुँच गया, वह उसका इन्कार कर दे, वह काफिर है. इसमें एक महत्वपूर्ण बात यह भी है, कि अगर किसी ने प्रभु से सत्य मार्ग को जानने की इच्छा ही नहीं की और आँख मूंद कर बस वही करता रहा जो उसके पूर्वज करते आ रहे हैं, तो वह भी इसी श्रेणी में आएगा. क्योंकि ईश्वर कुरआन में कहता है (जिसका अर्थ है) कि "वह ना चाहने वालो को धर्म की समझ नहीं देता".
कुरआन में आए ईश्वर के एक सन्देश पर ध्यान दीजिये:
02:62-Those who believe (in the Qur'an), those who follow the Jewish (scriptures), and the Sabians and the Christians, any who believe in God and the Last Day, and work righteousness, on them shall be no fear, nor shall they grieve.
2:62 निसंदेह, ईमान वाले और जो यहूद हुए और इसाई और साबिई, जो भी ईश्वर और अंतिम दिन पर ईमान लाया (विश्वास किया) और अच्छा कर्म किया, तो ऐसे लोगो का उनके अपने रब (पालने वाला) के पास (अच्छा) बदला है, उनको न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे.
उपरोक्त श्लोक (आयत) के अनुसार जिसने भी अल्लाह (ईश्वर) और इस ब्रह्माण्ड के आखिरी दिन अर्थात इन्साफ के दिन पर विश्वास किया और अच्छे कर्म किये उन्हें परलोक में इस लोक के सत्कार्यों का अच्छा बदला मिलेगा और उनको कोई ग़म नहीं होगा.
अब यह प्रश्न उठता है कि प्रभु को इस्लाम के अनुसार पहचानना या बस पहचानना?
उत्तर:
ईश्वर, ईश्वर है! इसमें इसलाम के अनुसार या विरुद्ध वाली कोई बात है ही नहीं. धर्म हमारे-तुम्हारे हिसाब से नहीं अपितु ईश्वर के हिसाब से चलता है. अर्थात ईश्वर ने जिसके ह्रदय में सत्य का ज्ञान प्रवाहित किया, लेकिन उसने उस सत्य को मानने से इनकार कर दिया, वह काफिर है. इसमें एक बात बहुत ही अधिक ध्यान देने की है. और वह यह कि ईश्वर एक है और उसका सत्य मार्ग भी एक ही है. जिसने भी ईश्वर से प्रार्थना कि उसे सत्य के मार्ग का ज्ञान दे, तो ईश्वर अवश्य उस मार्ग का ज्ञान अमुक मनुष्य को देगा. चाहे वह मनुष्य समुन्द्रों के बीचों-बीच, किसी छोटे से टापू में बिलकुल अकेला ही रहता हो. इसमें कोई दो राय किसी भी धर्म के पंडितो की हो नहीं सकती है.
इसलिए मनुष्य के लिए यह कोई मायने रखता ही नहीं कि वह किसी मुसलमान के घर पैदा हुआ है या फिर हिन्दू अथवा इसाई के घर. उसे तो बस अपने प्रभु से सत्य के मार्ग को दिखाने की प्रार्थना एवं प्रयास भर करना है. क्योंकि अब यह प्रभु का कार्य है कि अमुक व्यक्ति को "अपने सत्य" का मार्ग दिखलाये. प्रभु को पहचानना या न पहचानना किसी भी मनुष्य के वश की बात नहीं है, यहाँ तो सिर्फ प्रभु का ही वश चलता है और वह पवित्र कुरआन में कहता है कि:
"अगर कोई मनुष्य मेरी तरफ एक हाथ बढ़ता है, तो मैं उसकी तरफ दो हाथ बढ़ता हूँ, अगर कोई चल कर आता है तो मैं दौड़ कर आता हूँ."
मित्रो! हर धर्म की कसौटी पर यह बात सौ प्रतिशत सही उतरती है. इसलिए अगर इस राह पर चला जाय तो आपस के झगडे-फसाद हमेशा-हमेश के लिए समाप्त हो जाएँगे.
कुरआन में आए ईश्वर के एक सन्देश पर ध्यान दीजिये:
02:62-Those who believe (in the Qur'an), those who follow the Jewish (scriptures), and the Sabians and the Christians, any who believe in God and the Last Day, and work righteousness, on them shall be no fear, nor shall they grieve.
2:62 निसंदेह, ईमान वाले और जो यहूद हुए और इसाई और साबिई, जो भी ईश्वर और अंतिम दिन पर ईमान लाया (विश्वास किया) और अच्छा कर्म किया, तो ऐसे लोगो का उनके अपने रब (पालने वाला) के पास (अच्छा) बदला है, उनको न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे.
उपरोक्त श्लोक (आयत) के अनुसार जिसने भी अल्लाह (ईश्वर) और इस ब्रह्माण्ड के आखिरी दिन अर्थात इन्साफ के दिन पर विश्वास किया और अच्छे कर्म किये उन्हें परलोक में इस लोक के सत्कार्यों का अच्छा बदला मिलेगा और उनको कोई ग़म नहीं होगा.
अब यह प्रश्न उठता है कि प्रभु को इस्लाम के अनुसार पहचानना या बस पहचानना?
उत्तर:
ईश्वर, ईश्वर है! इसमें इसलाम के अनुसार या विरुद्ध वाली कोई बात है ही नहीं. धर्म हमारे-तुम्हारे हिसाब से नहीं अपितु ईश्वर के हिसाब से चलता है. अर्थात ईश्वर ने जिसके ह्रदय में सत्य का ज्ञान प्रवाहित किया, लेकिन उसने उस सत्य को मानने से इनकार कर दिया, वह काफिर है. इसमें एक बात बहुत ही अधिक ध्यान देने की है. और वह यह कि ईश्वर एक है और उसका सत्य मार्ग भी एक ही है. जिसने भी ईश्वर से प्रार्थना कि उसे सत्य के मार्ग का ज्ञान दे, तो ईश्वर अवश्य उस मार्ग का ज्ञान अमुक मनुष्य को देगा. चाहे वह मनुष्य समुन्द्रों के बीचों-बीच, किसी छोटे से टापू में बिलकुल अकेला ही रहता हो. इसमें कोई दो राय किसी भी धर्म के पंडितो की हो नहीं सकती है.
इसलिए मनुष्य के लिए यह कोई मायने रखता ही नहीं कि वह किसी मुसलमान के घर पैदा हुआ है या फिर हिन्दू अथवा इसाई के घर. उसे तो बस अपने प्रभु से सत्य के मार्ग को दिखाने की प्रार्थना एवं प्रयास भर करना है. क्योंकि अब यह प्रभु का कार्य है कि अमुक व्यक्ति को "अपने सत्य" का मार्ग दिखलाये. प्रभु को पहचानना या न पहचानना किसी भी मनुष्य के वश की बात नहीं है, यहाँ तो सिर्फ प्रभु का ही वश चलता है और वह पवित्र कुरआन में कहता है कि:
"अगर कोई मनुष्य मेरी तरफ एक हाथ बढ़ता है, तो मैं उसकी तरफ दो हाथ बढ़ता हूँ, अगर कोई चल कर आता है तो मैं दौड़ कर आता हूँ."
मित्रो! हर धर्म की कसौटी पर यह बात सौ प्रतिशत सही उतरती है. इसलिए अगर इस राह पर चला जाय तो आपस के झगडे-फसाद हमेशा-हमेश के लिए समाप्त हो जाएँगे.
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
32 comments:
आज सबसे अधिक लड़ाई इस बात पर है कि "ईश्वर तक पहुँचने का मेर रास्ता सही है". अब दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा कर भी समझ में ना आये तो सबसे बढ़िया तरीका यही है कि स्वयं उस प्रभु से मालूम कर लिया जाए, कि "हे प्रभु! मुझे अपना सत्य मार्ग का ज्ञान दे दे."
अगर हमने अपने ईश से प्रार्थना की और प्रयास किया तो यह हो ही नहीं सकता है, कि प्रभु हमें अपना मार्ग न दिखाए. क्योंकि अब यह स्वयं उस प्रभु का कार्य है कि वह हमें अपने सत्य मार्ग का दर्शन कराए.
Shahnawaz ji,
Kafir shabd ki itni achhi paribhasha batane ke liye dhanywad!
Rashmi G
Orkut par to aapke Vichar Dhamal macha hi rahe the, yahan per bhi aapne likhna start kardiya.
Bhadhai!
Aapne ek achha tarika bataya hai... Prabhu ko pane. Bilkul swayam unse hi prarthna karna sabse achha vikalp hai........
Dhanywad Shahi ji
शाह भाई अपना हिंदी ब्लॉग शुरू करने पर बधाई! आपने यहाँ काफी से उत्तर एक साथ लिखे हैं, जो कि काफी जानकारियों से भरपूर हैं. शुक्रिया!
आपकी ऑरकुट कम्युनिटी में दिए गए लिंक के ज़रिये काफी लोग इस ब्लॉग और blogvani पर visit कर रहे हैं. और ब्लॉग वाणी तो बहुत ही मस्त वेब साईट है हिंदी पसंद करने वालो के लिए.
वहां पर मैंने अनवर जमाल साहब का ब्लॉग भी देखा. उनकी किताबे पढने के बाद उनके ब्लॉग पढना एक अलग ही अनुभव है.
blogvani का पता बताने के लिए शुक्रिया!
-लियाकत अली
धर्म हमारे-तुम्हारे हिसाब से नहीं अपितु ईश्वर के हिसाब से चलता है. अर्थात ईश्वर ने जिसके ह्रदय में सत्य का ज्ञान प्रवाहित किया, लेकिन उसने उस सत्य को मानने से इनकार कर दिया, वह काफिर है.
शुक्रिया लियाक़त भाई और रश्मि जी!
@ Rashmi
Aapne ek achha tarika bataya hai... Prabhu ko pane. Bilkul swayam unse hi prarthna karna sabse achha vikalp hai........
Dhanywad Shahi ji"
रश्मि जी, यही हकीक़त है. प्रभु को पाने के लिए हमारे बस में तो सिर्फ उससे प्रार्थना करना और कोशिश करना ही है. यह हमारे बस में है ही नहीं कि हम उसे पहचान ले! यह तो उसी की ताकत है कि वह हमारी पुकार सुन कर हम तक पहुँच जाए.
आपसे गुज़ारिश है कि अनवर जमाल के ब्लॉग पढ़े. समाज में कुछ लोगो के द्वारा इस्लाम धर्म के बारे में फैलाए जा रही बुरी बातों को उचित ढंग से उठाते हैं और उनका जवाब देते हैं.
http://vedquran.blogspot.com
Kaash aap jaise log isi tarah achhai failate rahein aur hamare mulq mein dosti ki bayar behne lage. Lage rahiye Shah Sahab......
Yeh banda aapko salam karta hai....
Sahil
Shah ji,
Hindu-Muslim Ekta per bhi avashy hi likhiye. Orkut per aapki community mein bhi kafi logo ko intzaar he!
Dhanywad
Rashmi G
अस्सलाम अलैकुम, आपके ब्लॉग पर पहली बार आया.माशा अल्लाह !! क्या मेहनत की है आपने.बहुत खूब, अल्लाह ज़रूर इसका जज़ाये खैर देगा.आमीन.
तबियत खुश हो गयी.पहले जब मैं ने दीन-दुन्या की शुरुआत की थी तो दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आता था लेकिन आज माशा अल्लाह हमलोगों ने हमारी अंजुमन ही बना ली है.
आपके ब्लॉग का लिंक दीन-दुन्या में अभी देरहा हूँ.
आपके ब्लॉग पर आकर कुछ तसल्ली हुई.ठीक लिखते हो. सफ़र जारी रखें.पूरी तबीयत के
साथ लिखते रहें.टिप्पणियों का इन्तजार नहीं करें.वे आयेगी तो अच्छा है.नहीं भी
आये तो क्या.हमारा लिखा कभी तो रंग लाएगा. वैसे भी साहित्य अपने मन की खुशी के
लिए भी होता रहा है.
चलता हु.फिर आउंगा.और ब्लोगों का भी सफ़र करके अपनी राय देते रहेंगे तो लोग
आपको भी पढ़ते रहेंगे.
सादर,
माणिक
आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से सीधा जुड़ाव साथ ही कई गैर सरकारी मंचों से
अनौपचारिक जुड़ाव
http://apnimaati.blogspot.com
अपने ब्लॉग / वेबसाइट का मुफ्त में पंजीकरण हेतु यहाँ सफ़र करिएगा.
www.apnimaati.feedcluster.com
आपका स्वागत है. ऐसी ही वाणी और लेखन इन्सान को इन्सान बनाता है.
धन्यवाद तालिब भाई, माणिक भाई एवं राज सिंह भाई. मैं आपका तहेदिल से स्वागत करता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि सभी मित्र मेर इसी तरह होसला अफजाई करते रहेंगे.
माणिक भाई मैं आपकी सलाह पर अवश्य ही ध्यान दूंगा!
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
दो आलम मै रहकर खुद को तड़पाया करते थे 'मनीष',
अब ये आलम के ना मन है, ना मनीष है और ना ही कोई इश..!!
ye baat to bilkul sahi hai..........
ishwar tak jane ka use mahsus karne ka sabka apna tarika hai.
इश्वर को प्राप्त करना या प्राप्ति के उपाय करना निहायत ही निजी मामला है. ये सभी प्रकार के भाषा, तहजीब, प्रथाओं और बन्धनों से अलग प्रक्रिया है.
सार्वजनिक जीवन में इंसानियत/मानवता ही सबसे बड़ा धर्म होता है. और एकता के बिना राष्ट्र को बचाना मुश्किल है.
सार्थक ब्लोगरी करते रहें. आज इसकी समाज को सख्त जरुरत है.
काफीर का सिधा मतलब ईस्लाम को ना मान्ने वाला....
आप सिधे भी कह सकते थे
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काफ़िर एक अरबी शब्द है जिसको लेके मुस्लिमो और गैर मुस्लिमो में प्राय: विवाद उत्पन्न होता रहता। इस्लाम जंहा काफ़िर शब्द का इस्तेमाल गैर मुस्लिमो करता है क्यों की वह मानता है की जो इस्लाम ईमान नहीं हैं वो "काफ़िर" है. वंही गैर मुस्लिम "काफ़िर" शब्द को अपमानजनक समझते हैं , अपने सभी ने की इस्लामिक आतंकवादी गैर मुस्लिमो को "काफ़िर" ही संबोधित करते हैं। इस लेख में आप जानेंगे की "काफ़िर " शब्द का अर्थ क्या होता है.
1 -काफ़िर शब्द की उत्पति
कफिर शब्द "कफ़्र" बना है जिसका अर्थ होता है "ढकना " या "छिपाना " . इस्लाम उदय से पहले अरब के किसान अनाज के बीजो को खेत में फसल बोने के लिए जमीन में गाड़ते थे उस प्रक्रिया को वो "कफ़्र " कहते थे। इस प्रकार काफ़िर शब्द का प्रयोग उस व्यक्ति के लिए किया था जो "छिपा " या " ढ़का " हो।
इस्लाम के उदय के बाद "काफ़िर " शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम मक्का में किया गया , मुस्लिमो ने काफ़िर उन्हें कहा जिन्होंने इस्लाम को नहीं माना । मुस्लिम समझते थे की जिन्होंने इस्लाम( जो की उनके लिए अल्लाह की तरफ उतरा सन्देश था ) को नहीं माना वो काफ़िर हैं। क्यों की वो समझते थे की अल्लाह ने क़ुरान के रूप में सत्य का सन्देश दिया है और जो इस्लाम को नहीं अपना रहा है वह सत्य से "छिप " रहा है या सत्य को "ढक " रहा है इस कारण उन्होंने इस्लाम न अपनाने वालो को "काफ़िर" संबोधित किया । जिस प्रकार चोर , कपटी सत्य से छुपना चाहता है या सत्य परे रहता है ,उसी प्रकार उसी प्रकार अरबी मुस्लिमो मानना था की जो इस्लाम को नहीं अपना रहा है वह भी अल्लाह / कुरान रुपी सत्य से छिप रहा है
देखे काफ़िर शब्द का अर्थ ऑक्सफ़ोर्ड इस्लामिक डिक्सनरी में
2- काफ़िर शब्द कुरान में -
कुरान में काफ़िर( अधर्मी) शब्द उसके लिए प्रयोग हुआ है जो "अल्लाह " में इमान न लाता हो , क़ुरान में काफ़िर और इसका बहुवचन "कुफ़्रों" शब्द प्रयोग 134 बार है । "कुफ्र " शब्द प्रयोग 37 बार उनके लिए हुआ है जो इस्लाम अल्लाह यकीन नहीं रखते।
देखिये कुरान में आयते जो काफिरों के लिए प्रयोग हुयी हैं -
1 -"और जब उन्हें वाले देखते तो कहते "यह तो भटके हुए हैं "( क़ुरान 83 :32 )
2 -" झुठलाने वालों को शीघ्र दंड मिलके रहेगा (26 :1 )
3- " ये रसूल! जो लोग अधर्म के मार्ग पर दौड़ते हैं , उनके लिए तुम दुखी न होना , वे जिन्होंने अपने मुंह से कहा " हम ईमान आये " किन्तु से ईमान नहीं लाये ,और ये जो यहूदी हैं झूठ के लिए कान लगाते हैं और उन दुसरे लोगो की तरह सुनते हैं जो तुम पर ईमान नहीं लाये , यह वही लोग हैं जिनके दिलो को अल्लाह ने स्वच्छ रखना नहीं चाहा । उनके लिए संसार में भी अपमान औरतिरिस्कार है और आखिरत में भी यातना है ( कुरान , 5 : 41 )
पाठक मित्र चाहे तो इन आयतों की जाँच http://quranhindi.com/ पर भी कर सकते हैं।
क़ाफ़िर का अर्थ है इंकार करने वाला या फिर।छुपाने वाला, और इंकार या छुपा वाही सकता है जिसे ईश्वर का ज्ञान प्राप्त हो गया हो... हर धर्म के एतबार से क़ाफ़िर का अर्थ ज्ञान प्राप्त होने के बाद उस धर्म का इंकार करने वाला लगाया जा सकता है।
Hindu aur Musalman me Ekta?? Kabhi dekhi hai kya?? Blog par likhne se Ekta nahi paida Hoti. Apne Apne Dharm k anusar Apne Ishwar ya Allah Ko Maan lo itna he bahut hai.
Bilkul sahi kaha. Kafir ka MATLAB Islam Ko nahi Maan ne wala.
Quaran ke hisab se sirf islam hi ek din hai.Sirf allah par par iman lane vale ko momin kaha gaya hai baki jo log hai o kafir hai.Vah vaikti jo allah, uske rasul jibrail or mikail ko nhi mante o sab ke sab kafir hai. Agar aap allah uske rasul unke isdut ko agar nhi mante to aap kafir hai or kafir ko kabhi jannat nahi milega chahe o kitna bhi bhala aadmi kyu na ho imandar kyu nhi ho unhe jannat nhi milegi.
साथ ही भी पूछ लीजिए कि क़ुरान काफिर से कैसा सलूक करने का आदेश देती है।
Kafir ka matalab eetana lanba kaha ke samajha ne ka kya matalab hai sedha bolo na jisane Islam nahi kabula WO kafir hai ,jisane Allah ko nahi mana WO kafir hai, jisane mahamad ko nahi mana WO kafir yes bolane me saram aata hai kya. dusa re dharam me jara bataoo ki kaha likha kaha hai Jo sayatha ko nahi manata hai WO kafir hai
क्यों यार इधर उधर भटका रहे हो, काफिर का अर्थ-गैर मुस्लिम होता है
Kafir ka arth hai jo Islam ko kubul na Kare. Aur Islam apne aapko mahan dharm batata hai. Aur un kafiro par jab tak julm dhao tab tak Woh kalma na padha, gaumans na khaye bahar se kuch aur andar se kuch aur hai Islam usi prakar se jis prakar jis prakar musalman dogule hote hain, jaise maulana sad Bol raha tha ki agar masjid mein maut bhi aa jaye to haste haste gale laga lunga aur ab suaro Ki Tarah suaro ki dhavli mein chipta fir raha hai,sach kyon nahin bolta bhai ghuma fira ke safai mat de Aligarh mein rehta hun Sab janta hun kafir kise kehte aur Kya likha hai, sabhi aayato mein, baqrah padi hai
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