
किसी पर झूठा इलज़ाम लगाना या झूठा इलज़ाम लगाने वालों का साथ देना, जब तक किसी पर जुर्म साबित ना हो जाए, (मतलब जुर्म की सच्ची गवाही ना मिल जाए) उसे मुजरिम ठहराना अथवा जुर्म साबित किये बिना ही सज़ा देना, सजा देने की मांग करना ...या सजा देने की पैरवी करना अन्याय और अत्याचार है।
... निसंदेह अत्याचारी कभी सफल नहीं हो सकते [कुरआन 6:21]
... जो लोगो पर ज़ुल्म करते हैं और नाहक ज्यादतियां करते हैं। ऐसे लोगों के लिए दुखद यातना है। [42:42]
किन्तु जिसने धैर्य से काम लिया और क्षमा कर दिया वह उन कामों में से हैं जो (सफलता के लिए) आवश्यक ठहरा दिए गए हैं। [42:43]
किन्तु जिसने धैर्य से काम लिया और क्षमा कर दिया वह उन कामों में से हैं जो (सफलता के लिए) आवश्यक ठहरा दिए गए हैं। [42:43]
और यह बस्तियां वह हैं जिन्होंने अत्याचार किया और हमने उन्हें विनष्ट कर दिया.... [18:59]