आखिर कब तक उकसावे में आकर अपनी उर्जा को बर्बाद करते रहोगे! जैसे लेखन का प्रयोग आपने अपनी पुस्तक "दयानंद जी ने क्या खोया क्या पाया" में किया था, अपनी प्रतिभा को वैसे ही प्रयोग करिए, ताकि लोगो ने जो इस्लाम के बारे में मिथ्या प्रचार फैला रखा है, उसका अंत हो. वैसे भी इंसान को हमेशा मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए, कटु- वाणी के प्रयोग से कभी भी बात के महत्त्व का पता नहीं चलता है. कुछ लोग आपको विषाक्त विषयों में उलझाए रखना चाहते हैं, इन लोगो का मकसद ही यह हो सकता है की आपको झगड़ो में उलझाए रखा जा सके. मेरे विचार से तो आपको हिन्दू-मुस्लिम एकता पर लिखना चाहिए, क्योंकि प्रेम और शांति से बढ़कर विश्व में कोई भी विषय नहीं हो सकता है. आपके ब्लॉग का नाम वेद और कुरआन है, तो क्यों ना इन दोनों धर्मों के ग्रंथो के बीच यक्सू (एक जैसी) बातों को दुनिया के सामने लाया जाए.
मेरा भी यही मानना है, की सबसे पुराना धर्म सनातन धर्म ही है. यह धर्म आदम (अ.) के धरती पर पैदा होने के समय से चला आ रहा है. इस्लाम कोई नया धर्म नहीं अपितु वही पुराना सनातन धर्म ही है.
इस्लाम कभी भी इस बात की इजाज़त नहीं देता है, कि किसी के भी मज़हब के बारे में उल्टा-सीधा लिखा जाए. इस्लाम तो शांति और भाई-चारे का सन्देश देता है. मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ, कि यहाँ लोग दोगले सिधांत पर चलते हैं, जब कोई कुरआन के बारें में गलत बातें लिखता हैं, (जिन का कोई सर-पैर भी नहीं होता) तो वही लोग वहां जाकर उस लेख की तारीफों में कसीदे पढ़ते हैं. परन्तु जब कोई हिन्दू धर्म के बारे में लिखता है, तो लोग धमकियां देने लगते हैं.
फिरदौस बहन क्या आपने कभी इन लोगो के खिलाफ भी आवाज़ उठाने का प्रयास किया है? जब अमित शर्मा ने श्लोको का उल्लेख करते हुए ऐसे भाष्य का प्रयोग किया जिसे स्वयं हिन्दू समाज स्वीकार नहीं करता (अर्थात स्वामी दयानंद जी द्वारा रचित वेदों का भाष्य) तो आप स्वयं वहां जाकर उनकी तारीफ करती है, लेकिन जब तारकेश्वर जी, अमित शर्मा जी और चिपलूनकर जी जैसे महानुभव स्वयं कुरआन के बारे में लिखे गए उलटे-सीधे लेखों का समर्थन करते हैं, तब आपकी कलम क्यों रुक जाती है?
वैसे आपके और डॉ. अनवर जमाल के लेखों में फर्क क्या है? आप इस्लाम कि तत्कथित कुरीतियों के बारें में लिख रही है और वह हिन्दू धर्म की. मेरे विचार से तो दोनों ही गलत हैं. होना तो यह चाहिए, कि अगर हमें लगता है कि समाज में कोई गलत बात चल रही है, तो समाज के सामने सही बात को पेश किया जाए. उधाहरणत: अगर आपको लगता है, कि बुरखा इस्लाम की प्रथा नहीं है, तो आपको कुरआन या हदीस का उदहारण पेश करके लोगो को शिक्षित करने का प्रयास करना चाहिए था. जैसा कि मेरे विचार से इस्लाम दुसरे धर्म का पालन करने वालो के साथ क्षत्रुता नहीं अपितु मित्रता और इन्साफ का व्यवहार करने का हुक्म देता है, तो मैंने कुरआन-ए-करीम और हदीसों का हवाला देते हुए लेख लिखा. "गैर-मुसलमानों के साथ संबंधों के लिए इस्लाम के अनुसार दिशानिर्देश"
जब अंजुम शेख ने आपसे कुछ सवाल किये तो आपने उन सवालों का जवाब देने कि जगह उसके होने पर ही सवाल खड़ा कर दिया. हालाँकि उसके होने या न होने से समाज का कोई ताल्लुक ही नहीं था, आपके सामने किसी ने सवाल लिखे थे तो आपका फ़र्ज़ था कि उनके प्रश्नों का उत्तर अगर आपके पास है तो लिखा जाए. वैसे उनके सवालों का जवाब आपके पास होगा भी नहीं, क्योंकि उनके सवाल एकदम जायज़ है. मानता हूँ कि औरतों के साथ गलत व्यवहार होता है, उनके ऊपर ज़बरदस्ती धर्म को थोपा जाता है, परन्तु आप अगर उस ज़बरदस्ती का विरोध करती और यह मुहीम चलाती कि "ज़बरदस्ती पर्दा गलत है" या औरतों के साथ ज़बरदस्ती कोई भी कार्य नहीं होना चाहिए" तो मैं स्वयं ही नहीं अपितु सारा शिक्षित मुस्लिम समाज आपका तहे-दिल से समर्थन करता. परन्तु आप तो स्वयं किसी देश की उस ज़बरदस्ती का समर्थन कर रही थी, जो कि स्वयं एक औरत को ज़बरदस्ती उसके धर्म को मानने से रोक रही थी, क्या यह सही था?
अंत में फिर से डॉ. अनवर जमाल से गुज़ारिश करता हूँ, कि अपनी प्रतिभा को बेकार की बहस में ज़ाया करने की जगह उचित जगह पर और समाज और देश का भला करने में लगाएं. और यही अनुरोध फिरदौस बहन से भी है कि चाटुकारों की बातों में आने की जगह मुस्लिम समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने कि कोशिश करें. पर इसके लिए पहले समस्या का अध्यन करके उसका हल बताना आवश्यक है
- शाहनवाज़ सिद्दीकी
33 comments:
tumne bahur hi sarthak lekh likha hai iske liye aapko badhai,lekh me sare pahaluon ko aapne dikhaya hai...par mujhe nahi lagta hai ki ye log samjhenge bas ek dusre par keechad uchalte rahenge aur yahi kahenge ki shuruaat maine nahi usne kari thi....
1 baar fir dhanywaad badhiya post par
कुछ अछा लिखो भाई जो तार्किक भी हो औऱ सच्चा भी.....सिर्फ और सिर्फ इस्लाम ही सबसे सही धर्म है और कुछ नहीं.....ये तो दुराग्रह है
हम आपकी बात से पूरी तरह सहमत हैं। इस्लाम हमें इस प्रकार की बातें करने की अनुमति भी नहीं देता। यदि कोई इस्लाम का विरोद्ध करता है जो करने दीजिए परन्तु हम सकारात्मक लेख ही लिखें।
प्रेम रस वाले भैया तू प्रेम का रस पिलाये जा जिसके नसीब में होगा वह पियेगा
अक्ल तो नहीं लेकिन मुफ़्त सर खपाते हैं
फ़लसफ़ीनुमा बन कर फ़लसफ़ा सिखाते हैं
शरपसन्द अनासिर की यूरिशों के क्या कहने
नफ़रतों के शोलों से ज़िन्दगी जलाते हैं
ज़िन्दगी की अज़्मत का ऐतराफ़ है हमें
मुश्किलों की ज़द में भी हम मुस्कुराते हैं
aap theek khete hai shahnawaz bhai is trha ki bato me energy vest ho rahi hai jo log islam ki mukhalfat me pagal huae ja rahe the woh bhi apni haqeeqat samajh chuke halanke ye log phir bhi apni apni badtameezeeyo se baaz nahi aayenge
Aapne bilkul theek likha hai shahnewaz ji, maza nafrat me nahi balki pyar me hai.
Magar kya ye log samjhenge?
प्रेम और शांति से बढ़कर विश्व में कोई भी विषय नहीं हो सकता है.
हम शाहनवाज साहब से पूरी तरह सहमत हैं।
अनवर साहब गौर करें। ऐसे में क्या फर्क रह जाएगा उनमें और आप में। आप काबिल आदमी है। अपनी काबिलियत को सकारात्मक राह की ओर लगाएं।
मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ, कि यहाँ लोग दोगले सिधांत पर चलते हैं, जब कोई कुरआन के बारें में गलत बातें लिखता हैं, (जिन का कोई सर-पैर भी नहीं होता) तो वही लोग वहां जाकर उस लेख की तारीफों में कसीदे पढ़ते हैं. परन्तु जब कोई हिन्दू धर्म के भाष्यों के बारे में लिखता है, तो लोग धमकियां देने लगते हैं. फिरदौस बहन क्या आपने कभी इन लोगो के खिलाफ भी आवाज़ उठाने का प्रयास किया है?
ज़िन्दगी की अज़्मत का ऐतराफ़ है हमें
मुश्किलों की ज़द में भी हम मुस्कुराते हैं
waah! waah!... kya baat hai !
@ shah nawaz brother-
Nice post !
एक एक बात से सहमत!
मित्र शाहनवाज;आप बहुत प्रभावी तरीके से अपनी बात प्रस्तुत करते हो!उसके लिए आप बधाई के पात्र हो!आप मुद्दे को पूरा सम्मान देकर ही कुछ लिखते हो,मुझे ऐसा लगता है!इस पर भी मै आपको "विष्पुरुष" कहूं,तो क्या ये उचित है?ये मेरे अन्दर गहरे में बैठे पुश्तैनी संस्कारों कि झलक नहीं है?हम कुछ भी मानने के लिए स्वतंत्र है,लेकिन क्या अपनी सोच को सब पर थोपने के लिए भी?
गलत हर जगह है,लेकिन गलत को गलत कह कर उसका विरोध भी हर जगह हो रहा है,होना भी चाहिए!लेकिन सवाल तो ये है श्रीमान की सही को भी गलत बता कर उसका विरोध करना कहा तक उचित है!और अधिकतर हो कहा रहा है,कृपया गौर करे!
मुझे बड़ी ख़ुशी होगी कि आप के समझाने से भी ये "i am the best " वाली गलत तरीके से लगी होड़ रूक जायेगी तो!हालांकि मुझे ऐसा नहीं लगता!लेकिन "टिप्पणियों के द्वारा चाटुकारिता" वाली बात मेरे लिए नयी रही!
कुंवर जी,
"जब अंजुम शेख ने आपसे कुछ सवाल किये तो आपने उन सवालों का जवाब देने कि जगह उसके होने पर ही सवाल खड़ा कर दिया. हालाँकि उसके होने या न होने से समाज का कोई ताल्लुक ही नहीं था, आपके सामने किसी ने सवाल लिखे थे तो आपका फ़र्ज़ था कि उनके प्रश्नों का उत्तर अगर आपके पास है तो लिखा जाए. वैसे उनके सवालों का जवाब आपके पास होगा भी नहीं, क्योंकि उनके सवाल एकदम जायज़ है. मानता हूँ कि औरतों के साथ गलत व्यवहार होता है, उनके ऊपर ज़बरदस्ती धर्म को थोपा जाता है, परन्तु आप अगर उस ज़बरदस्ती का विरोध करती और यह मुहीम चलाती कि "ज़बरदस्ती पर्दा गलत है" या औरतों के साथ ज़बरदस्ती कोई भी कार्य नहीं होना चाहिए" तो मैं स्वयं ही नहीं अपितु सारा शिक्षित मुस्लिम समाज आपका तहे-दिल से समर्थन करता. परन्तु आप तो स्वयं किसी देश की उस ज़बरदस्ती का समर्थन कर रही थी, जो कि स्वयं एक औरत को ज़बरदस्ती उसके धर्म को मानने से रोक रही थी, क्या यह सही था?"
Shah ji, uprokt baat mujhe bilkul jayaz lagi
भाई शाह नवाज़,
मेरे मित्र ने जिससे की मैंने फोन करके अर्थ पूछा था ने किसी भाष्यकार के अर्थ को फालो करके नहीं बताया है, बल्कि उसके पास व्याकरण सब्जेक्ट होने से खुद को ही इतना सामान्य सा अर्थ पता है .मैंने उससे सिर्फ अर्थ, और सन्दर्भ के बारे में ही पूछा था. जो की उस ने बड़ी आसानी से बता दिए और किसी भी तरह की व्याख्या के लिए भी पूछा था. लेकिन आपकी बात के लिए तो इतना ही काफी था.
और जो आप स्वामी श्रीदयानंद जी के बारे में कयास लगा रहे है तो इतना समझ लीजिये की, उन्होंने भले ही अपनी मान्यता के अनुसार वेद भाष्य किया होगा, पर शब्दार्थ तो व्याकरण के अनुसार ही किया था ना मेरे बंधु. अगर मेरे मित्र के बताये अर्थ और आप द्वारा प्रकाशुत किये जाने वाले दयानन्दजी के अर्थ की भाषा का मिलान हो जाये तो पाठक इतने मुरख थोड़े है की ये भी ना समझेंगे की, व्याख्या और शब्दार्थ में क्या भेद है. दयानंद जी के भाष्य से सहमती नहीं भी हो तो शब्दार्थ तो एक ही रहेगा श्रीमान. क्यों इतना परेशां हो रखे हो .
सिर्फ विरोध के लिए ही विरोध करना आपका काम है तो, भगवान से आपके लिए प्रार्थना करूँगा. और अगर वास्तव में मैंने अपनी एक पोस्ट जिसमें भी मैंने कोई मनमाना अर्थ करने की कोशिश नहीं की है के अलावा मेरा आपको चैलेंज है की पूरे ब्लॉग जगत में घूम घूम के एक भी पोस्ट या कमेन्ट लाके बता दीजिये जिसमें मैंने किसी धर्म ग्रन्थ की बुराई की हो.
सिर्फ अमन की बातों से कुछ ना होगा उसे व्यवहार में भी लाइए बंधु .
लेकिन जब तारकेश्वर जी, अमित शर्मा और चिपलूनकर जी जैसे महानुभव स्वयं कुरआन के बारे में लिखे गए उलटे-सीधे लेखों का समर्थन करते हैं
मेरी उस पोस्ट को आप इस एड्रेस पे पद सकते है< http://27amit.blogspot.com/2010/04/blog-post_9239.html >
और यह पोस्ट भी सिर्फ इसलिए की आपके प्रचार फलस्वरूप मेरे भी मन में भी इस प्रकार की जिग्ग्यासा पैदा हुई थी. इसमें किसी को दोष ना दीजियेगा क्योंकि "क्रिया आपकी है प्रतिक्रिया हमारी "
ये कैसे समझदारी वाली बात है कि "मेरी गलती उसकी गलती से छोटी है,तो मै सही हूँ!"
कुंवर जी,
@ मिहिरभोज
मिहिरभोज जी, मेरी तो कोशिश हमेशा ही अच्छा और तार्किक लिखने की होती है. रही बात इस्लाम को सबसे सही धर्म लिखने की तो यह मेरा हक है, कि अगर मैं अपने धर्म को सही मानता हूँ तो उसे सही ही लिखू. हाँ मुझे यह हक बिलकुल नहीं पहुँचता कि मैं किसी और के धर्म की बुराई करूँ, या उसके बारे में मिथ्या प्रचार करूँ.
@ Sanjeev Gupta
Magar kya ye log samjhenge?
संजीव जी, हमारा कम तो सिर्फ समझा देना है, अब समझना या न समझना तो इन लोगो का काम है.
@ Amit Sharma
अमित जी, अगर में कहूँ कि वह भाष्य सही है, अथवा फलां भाष्य गलत है, तो इससे बेकार की बहस बढ़ जाएगी. मेरे कहने का मतलब तो सिर्फ इतना था, कि अगर आपने किसी श्लोक अथवा मन्त्र की व्याख्या करनी है, तो किसी ऐसे भाष्य का ही सहारा लेना चाहिए जिसको की आप मानते हैं. अगर आप दयानंद जी के विचारों से सहमत हैं और उनके भाष्य का प्रयोग करना चाहते हैं, तो मुझे कुछ भी आपत्ति नहीं है, क्योंकि यह आपका अपना निर्णय है.
kunwarji's said...
ये कैसे समझदारी वाली बात है कि "मेरी गलती उसकी गलती से छोटी है,तो मै सही हूँ!"
कुंवर जी, मैंने कहीं कहा है क्या कि मेरी गलती उसकी गलती से छोटी है? मेरे अनुसार तो गलती-गलती ही है. और उसे गलत ही लिया जाना चाहिए.
ji ye baat maine saleem bhai jaan ki baat par kahi thi!
aap se kuchh or poochhna chaha tha,aapne dekha nahi!
kunwar ji,
क्षमा कीजिये कुंवर जी, मैं आपके प्रश्नों को समझ नहीं पाया, अगर थोडा आसान शब्दों में मालूम कर लेते तो सुविधा होती.
pehli baar "मित्र शाहनवाज;आप बहुत प्रभावी तरीके से अपनी बात प्रस्तुत करते हो!उसके लिए आप बधाई के पात्र हो!आप मुद्दे को पूरा सम्मान देकर ही कुछ लिखते हो,मुझे ऐसा लगता है!इस पर भी मै आपको "विष्पुरुष" कहूं,तो क्या ये उचित है?ये मेरे अन्दर गहरे में बैठे पुश्तैनी संस्कारों कि झलक नहीं है?हम कुछ भी मानने के लिए स्वतंत्र है,लेकिन क्या अपनी सोच को सब पर थोपने के लिए भी?
गलत हर जगह है,लेकिन गलत को गलत कह कर उसका विरोध भी हर जगह हो रहा है,होना भी चाहिए!लेकिन सवाल तो ये है श्रीमान की सही को भी गलत बता कर उसका विरोध करना कहा तक उचित है!और अधिकतर हो कहा रहा है,कृपया गौर करे!"
मुझे बड़ी ख़ुशी होगी कि आप के समझाने से भी ये "i am the best " वाली गलत तरीके से लगी होड़ रूक जायेगी तो!हालांकि मुझे ऐसा नहीं लगता!लेकिन "टिप्पणियों के द्वारा चाटुकारिता" वाली बात मेरे लिए नयी रही!" ye kaha tha!
दूसरी बार जो बात कही थी वो सलीम भाई जान को कही गयी थी!
तीसरी बार आपको ये ही बताया था और साथ में कहा था कि आपसे कुछ पूछना चाहा वो आपने देखा नहीं!
आपको असुविधा हुई,मै इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ!
कुंवर जी,
@ kunwarji
लेकिन क्या अपनी सोच को सब पर थोपने के लिए भी?
कुंवर जी, मैंने कब कोशिश की अपनी सोच को दुसरो पर थोपने की? मुझे मेरी सोच को दर्शाने का पूरा हक है (अगर उससे किसी की भावनाएं आहात ना होती हों अथवा कोई परेशानी ना हो), अगर कोई उससे सहमत है तो ठीक है, अगर सहमत नहीं है, तब भी उसको सहमत ना होने का पूरा हक है.
लेकिन सवाल तो ये है श्रीमान की सही को भी गलत बता कर उसका विरोध करना कहा तक उचित है
आप बताइए कि हमने किस सही बात को गलत बताकर, उसका विरोध किया है?
भाई साहब,मै आपकी लेखनी का पूर्ण सम्मान करता हूँ!आप थोडा सा अलग और देख गए बात को!मैंने भी कब आपका नाम लिया है!मैंने कहा है कि "गौर करे ये अधिक कहा हो रहा है!"और जो ये पोस्ट लिखी है आपने जिन महाशय को हर और से उचित ठहराने वाली,वो चिकित्सक महोदय क्या कर रहे है!अपनी बात थोपने कि पुरजोर कोशिशो का इस से बढ़ कर नमूना और क्या दूं!कल आप ही पूछ रहे थे क्यों गाऊं मै राष्ट्रगीत?
क्या ये उन राष्ट्रगीत गाने वालो को दण्डित करने वालो का खुला समर्थन नहीं है?क्या "थोपना टाइप" की बात का समर्थन करना थोपना हो सकता है?कृप्या बताएं!
कुंवर जी,
कुंवर जी, मैं कभी भी किसी की गलत बात का समर्थन नहीं करता हूँ, चाहे वोह डॉ. अनवर जमाल साहब हो या कोई और. मैंने तो सिर्फ उनसे अपील की है कि लोगो के उकसावे में आकर किसी भी धर्म के विरुद्ध कहना ना सिर्फ अपनी प्रतिभा को ज़ाया (बेकार) करना है बल्कि इस्लाम धर्म भी इसकी इजाज़त नहीं देता है.
राष्ट्रगीत गाने वालो को दण्डित करने वाले कौन लोग हैं? अगर आप राष्ट्र गीत गाते हैं तो मुझे तो क्या किसी भी मुसिम को इसपर आपत्ति नहीं हो सकती है.
वैसे अगर मैं वन्दे-मातरम को ज़बरदस्ती थोपने के विरोध में लिखता हूँ तो यह "थोपना टाइप" बात कैसे है???
ati uttam bhai jaan, aise ek dusare ko gali dene se achcha apne apne dharm ki buraiyon men sudhar kar lo. achchi cheezen bahar lao aur samaj ko jagrit karo.
ham bhi khush aur tum bhi khush wali baat ho jayegi.
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है. आशा है हमारे चर्चा स्तम्भ से आपका हौसला बढेगा.
अजीब दोहरे पैमाने के लोग हैं जब एक लड़की छद्म नाम से फिरदोस बन कर इस्लाम पर हमला करती ओर जन्नत को अय्याशी का अड्डा बताती हे तो यह लोग खुश होते ओर उसे हिट कर देते हैं ,परन्तु जब अनवर जमाल उन बातों का जवाब देते हैं तो यही लोग उन्हें दूसरों की भावनाओं का पास रखने की नसीहत देते हें ,ओर चद्मा नामी फिरदोस भी इनके सुर मैं सुर मिलाती दिखाई पड़ती हे ,
मुझे बेहद अफ़सोस है की मैंने आपको पहले ठीक से नहीं पढ़ा ! आपको शुभकामनाये !
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